Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति(श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 34 :: अवांतर श० 2 ] [819 पराणात्ता, तंजहा-प्रत्यंगइया समाउया समोववन्नगा अत्थेगइया समाउया विसमोश्वनगा तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं तुलद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्म पकरेंति तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं तुल्लद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, से तेण?णं जाव वेमायविसेमाहियं कम्मं पकरेंति 1 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरति 10 // सूत्रं 852 // 34-2 // कइविहा णं भंते ! परंपरोववन्नगा एगिदिया पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिदिया पराणत्ता, तंजहा-पुढविकाइया भेदो चउको जाव वणस्सइकाइयत्ति 1 / परंपरोक्वन्नग-अपजत्त-सुहुम-पुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए 2 जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव पचच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमो उसयो जाव लागवरिमंतो त्ति 2 / कहिन्नं भंते ! परंपरोक्वनग-बायरपुढविकाइयाणं ठाणा पराणत्ता ?. गोयमा ! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए जाव तुल्लट्ठितीयत्ति 3 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 4 // 34-3 // एवं सेसावि अट्ठ उद्देसगा जाव अवरमोति, नवरं अणंतरा अणंतरसरिसा परंपरा परंपरसरिसा चरमा य श्रचरमा य एव चेव, एवं एते एकारस उद्देसगा // 34-4 / 11 // सूत्रं 853 // पढमं एगिदियसेढीसयं समत्तं // 34 // 1 // ____कइविहा णं भंते ! कराहलेस्सा एगिदिया पराणत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा कराहलेस्मा एगिदिया पराणत्ता, भेदो चउको जहा कराहलेस्सएगिदियसए जाव वणस्मइकाइयत्ति 1 / कराहलेस्स-अपजत्तासुहुम-पुढवि. काइए णं भंते ! इसीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले एवं एएणं अभिलावणं जहेब भोहिउद्देसयो जाव लोगचरिमंतेत्ति सव्वस्थ कराहलेस्सेसु
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