Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीपद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्वगवति) सूत्रं : शतकं 34 :: अवांतर श०१ उ०१ ] / 813 समोहए 2 जे भविए उड्डलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपजत्त-सुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेजा?, गोयमा ! दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेजा 7) से केण?णं भंते ! जाव उववज्जेजा ? अट्ठो जहेव रयणप्पभाए तहेव सत्त सेढीयो 8 / एवं जाव अपजत्तवायरतेउकाइए ण भंते ! समयखेत्ते समोहए 2 जे भविए उडलोग-खेतकालीए बाहिरिल्ले खेत्ते पजत्तसुहुम-तेउकाइयत्ताए उअवजित्तर से णं भंते ! सेसं तं चेव 1 / अपजत्तं-बायरतेउक्काइए णं भंते ! समयखेते समोहए 2 जे भविए समयखेत्ते अपजन-बायर तेउकाइयत्ताए उवव. जित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेजा ?, गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेजा 10 / से केण?णं ? अट्ठो जहेव रयणप्पभाए तहेव सत्त सेढीयो, एवं पजत्त-बायरतेउकाइत्ताएवि, वाउयकाइएसु वणस्सइकाइएसु य जहा पुढविकाइएसु उववाइयो तहेव चउक्कएणं भेदेणं उववाएयव्यो, एवं पजत्तवायरसेउकाइथोवि एएसु चेव ठाणेसु उववाएयवो, वाउकाइयवणस्सइकाइयाणं जहेव पुढविकाइयत्ते उववायो तहेव भाणियब्यो 11 / अपजत्त-सुहुम-पुढविकाइए णं भंते! उडलोगखेतनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए समोहणित्ता जे भविए अहेलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपजत्त-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइसमएणं विग्गहेणं उववज्जेजा?, एवं उड्डलोग-खेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेते समोहयाणं अहेलोग-खेतनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते उववजयाणं सो चेव गमयो निरवसेसो भाणियन्बो जाव बायरवणस्सइकाइयो पजत्तयो बायरवणस्सइकाइएसु पजत्तएसु उववाइयो 12 / अपजत्त-सुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए 2 जे भविए लोगस्म पुरच्छिमिल्ले चेव चरिमंते अपज्जत-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववजि. त्तए से णं भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जति ?, गोयमा ! एगसम
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