Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ यामद्व्याख्याप्रज्ञप्ति(श्रीमद्भगवति)सूत्रं :: शतकं 34 :: उद्देशकः 1 ] [ 811 वन य समोहया दाहिणिल्ले चरिमंते समयखेते य उववाएयव्वा तेणेव गमएणं 16 / अपजत्त-सुहुम-पुटविकाइए णं भंते ! सकरप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए 2 जे भविए सकरप्पभाए पुटवीए पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्त-हुम-पुढविकाइयत्ताए उववजइ एवं जहेव रयणप्पभाए नाव स तेण?णं एवं एएणं कमेणं जाव पजत्तएसु सुहुमतेउकाइएसु 17 / यपजत्तसुहुमपुटविकाइए णं भंते ! सकरप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहइत्ता जे भविए समयखेत्ते अपजत बायर. उक्काइयत्ताएं उववजित्तए से णं भंते ! कतिममयएणं पुच्छा, गोयमा ! समइएमा वा तिसमइएण वा विग्गहेण उववजिज्जा 18 / से केण?णं ?, एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीयो पगणनायो, तंजहा-उज्जुयायता जाव यद्धचकवाला, एगोवंकाए सेढीए उपवजमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं अवज्जेजा दुहयोवंकाए सेटीए उववजमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववजजा से तेण?णं जाव उववज्जेजा 11 / एवं पजत्तएसुवि बायरतेउआइएसु, सेसं जहा रयणप्पभाए, जेवि बायरतेउकाइया अपजत्तगा य जित्तगा य समयखेत्ते समोहणित्ता दोचाए पुढवीए पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते विकाइएसु चउविहेसु अाउकाइएसु चउविहेसु तेउकाइएसु दुविहेसु याउकाइएसु चउबिहेसु वणस्सइकाएसु चउन्विहेसु उववज्जति तेऽवि एवं चव दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण उववाएयव्वा, बायरतेउकाइया ५पजत्तगा य पजत्तगा य जाहे तेसु चेव उववज्जति ताहे जहेव रयणप्पभाए रहब एगसमइय-दुसमइय-तिसमइयविग्गहा भाणियव्वा सेसं जहेव रयण भाए तहेव निरवसेसं, जहा सकरप्पभाए वत्तव्वया भणिया एवं जाव अहमत्तमागवि भाणियव्वा 20 // सूत्रं 850 // अपज्जत्त-सुहुम-पुढविकाइए ग भंते ! अहोलोय-खेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए 2 जे मविए उड्डलोय-खेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते. अपज्जत्त-सहुमपुढवि.
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