Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं :: शतकं 34 :: उद्देशकः 1 ] [809 मइएण वा सेसं तं चेव जाव से तेण?णं जाव विग्गहेणं उववज्जेजा 5 / एवं अपजत्त-सुहुम-पुढविकाइयो पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहणावेत्ता पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते बादरपुढविकाइएसु अपजत्तएसु उववाएयव्यो, ताहे तेसु चेव पजत्तएसु 4, एवं अाउकाइएसु चत्तारि घालावगा सुहुमेहिं अपजत्तपहिं ताहे पजत्तएहिं बायरेहिं अपजत्तएहिं ताहे पजत्तएहिं उववाएयब्वो 4, एवं चेव सुहुमतेउकाएहिवि अपजत्तएहिं 1 ताहे पजत्तएहिं उववाएयव्वो 2, 6 / अपजत्त-हुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ने चरिमंते समोहए समोहइत्ता जे भविए मणुस्सखेत्ते अपजत्तबादरतेउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेजा ?, सेसं तं चेव, एवं पजत्त-बायर-तेउक्काइयत्ताए उववाएयवो 4, वाउकाइए सुहुमवायरेसु जहा पाउकाइएसु उववाश्रो तहा उववाएयव्यो 4, एवं वणस्सइकाइएसुवि 20, 7 / पजत्त-सुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एवं पजत्त-सुहुम-पुढविकाइनोवि पुरच्छिमिल्ने चरिमंते समोहणावेत्ता एएणं चेव कमेणं एएसु चेव वीससु ठाणेसु उववाएयबो जाव बादरवणस्सइकाइएसु पजत्तएसुवि 40, एवं अपजत्तबादरपुढविकाइअोवि 60, एवं पजत्तबादरपुढविकाइग्रोवि 80, एवं श्राउकाइयोवि चउसुवि गमएसु पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए एयाए चेव वत्तव्वयाए एएसु चेव वीसइठाणेसु उववाएयब्बो 160, सुहुमतेउकाइनोवि अपजत्तो पजत्तो य एएसु चेव वीसाए ठाणेसु उवषाएयव्यो 8 / अपजत्त-बायरतेउकाइए णं भंते ! मणुस्सखेत्ते समोहए 2 जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पचच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्त-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेजा सेसं तहेव जाव से तेण?णं जाव उववज्जेजा एवं पुढविकाइएसु चउविहेसुवि उववाएयव्वो 1 / एवं ग्राउकाइएसु चउविहेसुवि, तेउकाइएसु सुहुमेसु अपजत्तएसु
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