Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ * मद्व्याख्याप्रज्ञप्ति(श्रीमद्भगवति सूत्रं शतकं 30 : उद्देशकः ] [801 त्ति जाब विहरति 4 // सूत्र 833 // 31-5 // कराइलेस्स-भवसिद्धियबुड्डाग-कडजुम्मनेरइया णं भंते ! कयो उववज्जति ?, एवं जहेव श्रोहियो कराहलेस्सउद्दे सत्रो तहेव निरवसेसं चउसुवि जुम्मेसु भाणियब्वो जाव अहे. मत्तमपुढवि-कराहलेस्स-खुड्डाग-कलियोगनेरइया णं भंते ! कत्रो उववज्जति?, हव 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरति 2 // सूत्र 834 // 31-6 // नीललेस्स-भवसिद्धिया चउसुवि जुम्मेसु तहेव भाणियवा जहा श्रोहिए नीललेस्सउद्दसए 1 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ 2 // सूत्रं 835 // 31-7 // काउलेस्सा भवसिद्धिया चउसुवि जुम्मेसु तहेव खवाएयव्वा जहेव श्रोहिए काउलेस्सउद्देसए 1 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 2 // सूत्रं 836 // 31-8 // जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि उद्देसया भणिया एवं अभवसिद्धीएहिवि चत्तारि उद्दे सगा भाणियव्वा जाव काउनेस्साउद्दे सश्रोत्ति 1 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 2 // सूत्रं 837 // 31-12 // एवं सम्मदिट्ठीहिवि लेस्सासंजुत्तेहि चत्तारि उद्दे सगा कायव्वा, नवरं सम्मदिट्ठी पढमबितिएसुवि दोसुवि उद्देसएसु अहेसत्तमापुढवीए न उववाएयव्यो, सेसं तं चेव 1 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति 2 / / सूत्रं 838 // 31-16 // मिच्छादिट्ठीहिवि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जहा भवसिद्धियाणं 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरति 2 // सूत्रं 831 // 31-20 // एवं कराहपक्खिएहिवि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जहेव भवसिद्धीएहिं 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरति 2 // सूत्रं 840 // 31-24 // सुक्कपक्खिएहिं एवं चेव चत्तारि उद्दे सगा भाणियव्वा जाव वालुयप्पभापुढवि-काउलेस्स-सुक्कपक्खिय-खुड्डागकलियोगनेरइया णं भंते ! कत्रो उववज्जति ?, तहेव जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जति 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरति 2 // सूत्रं 841 // सम्वेवि एए अट्ठावीस उद्दे सगा // 31-28 // उववायसयं सम्मत्तं / // इति एकत्रिंशत्तमं शतकम् // 31 //
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