Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ 802 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धु :: तृतीयो विभाग // अथ उद्वर्त्तनाख्यं द्वात्रिंशत्तमं शतकम् / खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! अणंतरं उध्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जंति ? किं नेरइएसु उववज्जति तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति उब्वट्टणा जहा वक्तीए 1 / ते णं भंते ! जीवा. एगसमएणं केवइया उव्वट्टति ?, गोयमा ! चत्तारि वा अट्ट वा बारस वा सोलस वा संखेजा वा असंखेजा वा उबट्टति 2 / ते णां. भंते ! जीवा कहं उन्वट्टति ?, गोयमा ! से जहा नामए पवए एवं तहेव, एवं सो. चेव गमयो जाव अायप्पयोगेणं उबट्टति नो परप्पयोगेणं उबट्टति 3 / रयणप्पभापुढविनेरइए खुड्डागकडजुम्मे, एवं रयणप्पभाएवि एवं जाव अहेसत्तमाए 4 / एवं खुड्डाग. तेयोग-खुड्डाग-दावरजुम्म-खड्डागकलियोगा नवरं परिमाणं जाणियव्वं, सेसं तं चेव 5 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 6. // सूत्रं 42 // 32-1 / / कराहलेस्स-कडजुम्मनेरइया एवं एएणं कमेणं जहेव उववायसए अट्ठावीसं उद्दे सगा भणिया तहेव उवट्टणासएवि अट्ठावीसं उद्दे सगा भाणियव्वा निरवसेसा नवरं उबट्टतित्ति अभिलायो भाणियव्वो, सेसं तं चेव 1 / सेवं भते ! २त्ति जाव विहरइ 2 // सूत्रं 843 // 32-28 // उववट्टणासयं समत्तं // ..... . // इति द्वाविशत्तमं शतकम् // 32 // . // अथ एकेन्द्रियाख्यं त्रयस्त्रिंशत्तमं शतकम् // ( अवान्तरद्वादशशतकोपेतम् ) कतिविहा णं भंते !. एगिदिया पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा एगिदिया पराणत्ता, तंजहा-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया 1 / पुढविकाइया णं भंते ! कतिविहा पराणता ?, गोयमा ! दुविहा पराणत्ता, तंजहा-सुहुम
Page Navigation
1 ... 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418