Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं :: शतकं 33 / / अवांतरशतक-१-२ ] [ 805 परंपरोक्वनगा // 33-5 // श्रणंतराहारगा जहा अणूतरोववन्नगा // 33-6 // परंपराहारगा जहा परंपरोववन्नंगा॥३३-७॥ अणंतरपजत्तगा जहा अणंतरोववन्नगा // 33-8 // परंपरपजत्तगा जहा परंपरोववनगा / / 33-1 // चरिमावि जहा परंपरोववन्नगा तहेव // 33-10 // एवं अचरिमावि // 33-11 // एवं एए एकारस उद्दे सगा। सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ // सूत्रं 847 // पढमं एगिदियसयं सम्मत्तं // 33 // 1 // किइविहा णं भंते ! कराहलेस्ता एगिदिया परणत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा कराहलेस्साएगिदिया पराणत्ता, तंजहा-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया 1 / कराहलेस्सा णं भंते ! पुढविक इया कइविहा पराणता ?, गोयमा ! दुविहा पराणता, तंजहा-सुहुमपुटविकाइया य बादरंपुढविकाइया य 2 / कराहलेस्सा णं भंते ! सुहुमपुढविकाइया कइविहा पराणता ?, गोयमा ! एवं एणं अभिलावेणं चउकभेदो जहेव श्रोहिउद्दसए जाव वणस्सइकाइयत्ति 3 / कराहलेस्स-अपजत्त-सुहुम-पुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मप्पगडीयो पराणत्तायो ?, एवं चेव एएणं अभिलावणं जहेव श्रोहिउद्देसए तहेव पन्नत्तायो तहेव बंधति तहेव वेदेति 4 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 5 / / 33-2-1 // कइविहा णं भंते ! अणंतरोववन्नंग-कराहलेस्स-एगिदिया पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा अणंतरोववन्नगा कराहलेस्सा एगिदिया एवं एएणं अभिलावेणं तहेव दुयत्रो भेदो जाव. वणस्सइकाइयत्ति 6 / अणं. तरोववन्नग-कराहलेस्स-सुहुम-पुढविकाइयाणं भंते ! कई कम्मप्पगडीयो पराणत्तायो ?, एवं एएणं अभिलावेणं जहा गोहियो अणंतरोववनगाणं उद्दे. मयो तहेव जाव वेदेति / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 8 // 33-2-2 // कइविहा णं भंते ! परंपरोववन्नगा कराहलेस्सा एगिदिया पराणत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगा कराहलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइया एवं एएणं अभिलावेणं तहेव चउको भेदो जाव वणस्सइकाइयत्ति 1 /
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