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१८. अहीणपंचिन्दियत्तं पि से लहे उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिसेवए समयं गोयम ! मा पमायए ।
जणे
१९. लद्धूण वि उत्तमं सुई सद्दहणा पुरावि दुल्लहा । मिच्छत्तनिसेवाए समयं गोयम ! मा पमायए ।।
जणे
२०. धम्मं पि हु सद्दहन्तया
दुल्लहया कारण फासया । इह कामगुणेहि मुच्छिया समयं गोयम ! मा पमायए ।
सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से सोयबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।।
२१. परिजूरइ ते
२२. परिजूरइ ते
सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से चक्खुबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए । २३. परिजूरइ ते सरीरयं
केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से घाणबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।।
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उत्तराध्ययन सूत्र
अविकल अर्थात् पूर्ण पंचेन्द्रियत्व की प्राप्ति होने पर भी श्रेष्ठ धर्म का श्रवण पुनः दुर्लभ है। क्योंकि कुतीर्थिकों की उपासना करने वाले भी देखे जाते हैं । इसलिए गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
उत्तम धर्म की श्रवणरूप श्रुति मिलने पर भी उस पर श्रद्धा होना दुर्लभ है। क्योंकि बहुत से लोग मिथ्यात्व का सेवन करते हैं । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत
कर ।
धर्म की श्रद्धा होने पर भी तदनुरूप काय से स्पर्श अर्थात् आचरण होना दुर्लभ है। बहुत से धर्मश्रद्धालु भी काम भोगों में आसक्त हैं । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर ।
तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश (सिर के बाल सफेद हो रहे हैं। तथा श्रवणशक्ति कमजोर हो रही है । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद
मत कर ।
तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं, आँखों की शक्ति क्षीण हो रही है । अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं । घ्राण शक्ति हीन हो रही है । अत: गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
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