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२४-प्रवचन-माता
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(४) आपात संलोक लोगों का आवागमन हो और वे दिखाई भी देते हों।
इस प्रकार स्थण्डिल भूमि चार प्रकार से होती है।
१७. अणावायमसंलोए
परस्सऽणुवघाइए। समे अज्झुसिरे यावि
अचिरकालकयंमि य॥ १८. वित्थिण्णे दूरमोगाढे
नासन्ने बिलवज्जिए। तसपाण-बीयरहिए उच्चाराईणि वोसिरे॥
जो भूमि अनापात-असंलोक हो, परोपघात से रहित हो, सम हो, अशुषिर हो-पोली न हो, तथा कुछ समय पहले निर्जीव हुई हो
विस्तृत हो, गाँव से दूर हो, बहुत नीचे तक अचित्त हो, बिल से रहित हो, तथा त्रस प्राणी और बीजों से रहित हो, ऐसी भूमि में उच्चार (मल) आदि का उत्सर्ग करना चाहिए।
ये पाँच समितियाँ संक्षेप से कही गई हैं। अब यहाँ से क्रमश: तीन गुप्तियाँ कहूँगा।
१९. एयाओ पंच समिईओ
समासेण वियाहिया। एत्तो य तओ गुत्तीओ वोच्छामि अणुपुव्वसो॥
सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा मणगुत्ती चउबिहा॥
मनोगुप्तिमनोगुप्ति के चार प्रकार हैंसत्या (सच)
मृषा (झूठ) सत्यामृषा (सत्य और झूठ से मिश्र) चौथी असत्यमृषा है, जो न सच है, न झूठ। अर्थात् केवल लोक-व्यवहार है।
यतना-संपन्न यति संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवृत्त मन का निर्वतन करे।
२१. संरम्भ-समारम्भे
आरम्भे य तहेव य। मणं पवत्तमाणं तु नियतेज्ज जयं जई।
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