Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Chandanashreeji
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 445
________________ ४१२ २१९. साहियं सागरं एक्कं उक्कोण ठिई भवे । भोज्जाणं जहन्त्रेणं दसवाससहस्सिया || २२०. पलिओवममेगं तु उक्कोण ठिई भवे । वन्तराणं जहनेणं दसवाससहस्सिया || २२१. पलिओवमं एगं तु वासलक्खेण साहियं । पलिओम भागो जोइसे जहन्निया ॥ २२२. दो चेव सागराई उक्कोसेण वियाहिया । सोहम्मंमि जने एगं च पलिओवमं ॥ २२३. सागरा साहिया दुन्नि उक्कोसेण वियाहिया । ईसाणम्मि जहन्नेणं साहियं पलिओवमं ॥ २२४. सागराणि य सत्तेव उक्कोण ठिई भवे । सणकुमारे जहन्त्रेणं दुन्नि ऊ सागरोवमा || २२५. साहिया सागरा सत्त उक्कोसेण ठिई भवे । माहिन्दम्मि जहन्त्रेणं साहिया दुन्नि सागरा | Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति किंचित् अधिक एक सागरोपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है। व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक पल्योपम की, और जघन्य दस हजार वर्ष की है 1 ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की, और जघन्य पल्योपमक का आठवाँ भाग है 1 सौधर्म देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति दो सागरोपम और जघन्य एक पल्योपम है । ईशान देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति किंचित् अधिक सागरोपम, और जघन्य किंचित् अधिक एक पल्योपम 1 सनत्कुमार देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति सात सागरोपम और जघन्य दो सागरोपम है । माहेन्द्रकुमार देवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति किंचित् अधिक सात सागरोपम, और जघन्य किंचित् अधिक दो सागरोपम है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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