Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Chandanashreeji
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 510
________________ ३६- अध्ययन ४७७ से परमाणु कहलाता है। दो परमाणुओं से मिलकर एकत्व परिणतिरूप द्विप्रदेशी स्कन्ध होता है । इसी प्रकार त्रिप्रदेशी आदि से लेकर अनन्तानन्त प्रदेशी स्कन्ध होते हैं । पुद्गल के अनन्त स्कन्ध हैं । परमाणु स्कन्ध में संलग्न रहता है, तब उसे प्रदेश कहते हैं और जब वह पृथक् अर्थात् अलग रहता है, तब वह परमाणु कहलाता है । गाथा १३, १४ - पुद्गल द्रव्य की स्थिति से अभिप्राय यह है, कि जघन्यतः एक समय तथा उत्कृष्टतः असंख्यात काल के बाद स्कन्ध आदि रूप से रहे हुए पुद्गल की संस्थिति में परिवर्तन हो जाता है । स्कन्ध बिखर जाता है, तथा परमाणु भी स्कन्ध में संलग्न होकर प्रदेश का रूप ले लेता है । अन्तर से अभिप्राय है-—- पहले के अवगाहित क्षेत्र को छोड़कर पुन: उसी विवक्षित क्षेत्र की अवस्थिति को प्राप्त होने में जो व्यवधान होता है, वह बीच का अन्तर काल । गाथा १५ से ४६ - पुद्गल के असाधरण धर्मों में संस्थान भी एक धर्म है । संस्थान के दो भेद हैं- (१) इत्थंस्थ और २ अनित्थंस्थ। जिसका त्रिकोण ...आदि नियत संस्थान हो, वह इत्थंस्थ कहलाता है, और जिसका कोई नियत संस्थान न हो, उसे अनित्थंस्थ कहते हैं । इत्थंस्थ के पाँच प्रकार हैं(१) परिमण्डल - चूड़ी की तरह गोल, (२) वृत्त - गेंद की तरह गोल, (३) त्रयस्र— त्रिकोण, (४) चतुरस्र - चौकोन, और (५) आयत - बांस या रस्सी तरह लम्बा । धर्मास्तिकाय आदि अरूपी द्रव्यों के केवल द्रव्य, क्षेत्र का ही वर्णन किया भाव का नहीं । इसका यह अर्थ नहीं कि इनके भाव नहीं होते। क्योंकि भाव अर्थात् पर्याय से शून्य कोई द्रव्य होता ही नहीं है। परन्तु पुद्गल के वर्ण आदि के समान रूपी द्रव्य के इन्द्रियग्राह्य स्थूल पर्याय नहीं होते, अतः भावों का शब्दश: उल्लेख नहीं किया है । पुद्गल के वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श आदि इन्द्रियग्राह्य भाव हैं, अत: उनका वर्णन विस्तार से किया गया है। कृष्णादि वर्ण गन्ध आदि से भाज्य होते हैं, तब कृष्णादि प्रत्येक पाँच वर्ण २० भेदों से गुणित होने पर वर्ण पर्याय के कुल १०० भंग होते हैं । इसी प्रकार सुगन्ध के २३ और दुर्गन्ध के २३, दोनों के मिलकर गन्ध पर्याय के ४६ भंग होते हैं । इसी प्रकार प्रत्येक रस के बीस-बीस भेद मिलाकर रस पंचक से संयोगी भंग १०० होते हैं । मृदु आदि प्रत्येक स्पर्श के सतरह-सतरह भेद मिलाकर आठ स्पर्श के १३६ भंग होते हैं । प्रत्येक संस्थान के बीस-बीस भेद मिलाकर संस्थान - पंचक के १०० संयोगी भंग होते हैं । समग्र भंगों की संकलना ४८२ है । ये सब भंग स्थूल दृष्टि से गिने गए हैं। वस्तुतः तारतम्य की दृष्टि से सिद्धान्ततः देखा जाए तो प्रत्येक के अनन्त भंग होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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