Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Chandanashreeji
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 477
________________ उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण काश्य अर्थात् इक्षुरस से किया था, अतः वे काश्यप नाम से प्रसिद्ध हुए । आगे चलकर यह उनका गोत्र ही हो गया । स्थानांग सूत्र में बताये गए गौतम, वत्स, कौशिक आदि सात गोत्रों में 'काश्यप' पहला गोत्र है । भागवत (पंचम स्कन्ध) आदि वैदिक पुराणों तथा कुछ वेदमंत्रों से भी भगवान् ऋषभदेव की आदिमहत्ता प्रकट होती है । सूत्रकृतांग (१ । २ ३ । २.) में तो स्पष्ट ही कहा है कि सब तीर्थंकर काश्यप के द्वारा प्ररूपित धर्म का ही अनुसरण करते रहे हैं - 'कासवस्स अणुधम्मचारिणो ।' ४४४ अध्ययन २६ गाथा १३-१६ – 'पौरुषी' शब्द का निर्माण पुरुष शब्द से है । पुरुष से जिस काल का माप हो, वह पौरुषी है, अर्थात् प्रहर । पुरुष शब्द के दो अर्थ हैं- पुरुष शरीर और शंकु । शंकु २४ अंगुल प्रमाण होता है । पैर से जानु (घुटने) तक का प्रमाण भी २४ अंगुल ही होता है। जिस दिन किसी भी वस्तु की छाया वस्तु के प्रमाण के अनुसार होती है, वह दिन दक्षिणायन का प्रथम दिन होता है । युग के प्रथम वर्ष (सूर्य वर्ष) के श्रावण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को शंकु एवं जानु की छाया अपने ही प्रमाण के अनुसार २४ अंगुल पड़ती है । १२ अंगुल का एक पाद-पैर होने से शंकु एवं जानु की २४ अंगुल छाया को दो पाद माना है । एक वर्ष में दो अयन होते हैं— दक्षिणायन और उत्तरायण । दक्षिणायन श्रावण मास में प्रारम्भ होता है और उत्तरायण माघ मास में । दक्षिणायन में छाया बढ़ती है, और उत्तरायण में कम होती है । पौरुषी छाया का प्रमाण Jain Education International समय आषाढ़ पूर्णिमा श्रवाण "" भाद्रपद आश्विन कार्तिक मृगशिर पौष माघ फाल्गुन चैत्र वैशाख ज्येष्ठ 99 "" "" 99 *** पाद - अंगुल २-० २-४ २-८ ३-० ३-४ ३-८ ४-० For Private & Personal Use Only ३-८ ३-४ ३-० २-८ २-४ www.jainelibrary.org

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