Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Chandanashreeji
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 496
________________ ४६३ ३१ - अध्ययन १४. खरस्वर १५. महाघोष । ये परम-आधार्मिक अर्थात् पापाचारी, क्रूर एवं निर्दय असुर जाति के देव हैं । इनके हिंसाकर्मों का अनुमोदन नहीं करना । गाथा षोडशक – (सूत्र कृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के १६ अध्ययन) १. स्वसमय परसमय २. वैतालीय ३. उपसर्गपरिज्ञा ४. स्त्रीपरिज्ञा ५. नरक विभक्ति ६. वीर स्तुति ७. कुशीलपरिभाषा ८. वीर्य ९. धर्म १०. समाधि ११. मार्ग १२. समवसरण १३. याथातथ्य १४. ग्रन्थ १५. आदानीय १६. गाथा । सतरह असंयम १ – ९. पृथिवीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पति काय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय- उक्त नौ प्रकार के जीवों की हिंसा करना, कराना, अनुमोदन करना । १०. अजीव असंयम—– अजीव होने पर भी जिन वस्तुओं के द्वारा असंयम होता हो, उन बहुमूल्य वस्त्र पात्र आदि का ग्रहण करना अजीव असंयम है | ११. प्रेक्षाअसंयम — जीवसहित स्थान में उठना, बैठना, सोना आदि । १२. उपेक्षा असंयम —— गृहस्थ के पाप कर्मों का अनुमोदन करना । १३. अपहृत्य असंयम — अविधि से किसी अनुपयोगी वस्तु का परठना । इसे परिष्ठापना असंयम भी कहते हैं । १४. प्रमार्जना असंयम — वस्त्र पात्र आदि की प्रमार्जना न करना । १५. मनः असंयम — मन में दुर्भाव रखना । १६. वचन असंयम—- कुवचन या असत्य बोलना । १७. काय असंयम ——— गमनागमनादि क्रियाओं में असावधान रहना । अठारह अब्रह्मचर्य - देवसम्बन्धी भोगों का मन, वचन और काय से स्वयं सेवन करना, दूसरों से करवाना, तथा करते हुए को भला जानना - इस प्रकार नौ भेद वैक्रिय शरीर सम्बन्धी होते हैं। मनुष्य तथा निर्यञ्चसम्बन्धी औदारिक भोगों के भी इसी तरह नौ भेद समझ लेने चाहिए। कुल मिलाकर अठारह भेद होते हैं । ज्ञाता धर्म कथा के १९ अध्ययन १. उत्क्षिप्त अर्थात् मेघकुमार, २. संघाट, ३. अण्ड, ४. कूर्म, ५. शैलक, ६. तुम्ब, ७. रोहिणी, ८. मल्ली, ९. माकन्दी, १०. चन्द्रमा, ११. दावद्दव, १२. उदक, १३. मण्डूक, १४. तेतलि १५. नन्दीफल, १६. अवरकंका, १७. आकीर्णक, १८. सुंसुमादारिका, १९. पुण्डरीक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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