Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Chandanashreeji
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 491
________________ ४५८ उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण आठ मदस्थान १. जाति मद—ऊँची और श्रेष्ठ जाति का अभिमान । २. कुलमद-ऊँचे कुल का अभिमान । ३. बलमद-अपने बल का घमण्ड । __ रूप मद-अपने रूप, सौन्दर्य का गर्व । ५. तप मद-उग्र तपस्वी होने का अभिमान । ६. श्रुत मद-शास्त्राभ्यास अर्थात् पाण्डित्य का अभिमान । ७. लाभ मद-अभीष्ट वस्तु के मिल जाने पर अपने लाभ का अहंकार। ८. ऐश्वर्य मद-अपने ऐश्वर्य अर्थात् प्रभुत्व का अहंकार । नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति १. विविक्त-वसति सेवन-स्त्री, पशु और नपुंसकों से युक्त स्थान में न ठहरे। २. स्त्री कथा परिहार-स्त्रियों की कथा-वार्ता, सौन्दर्य आदि की चर्चा न करे। निषद्यानुपवेशन-स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठे, उसके उठ जाने पर भी एक मुहूर्त तक उस आसन पर न बैठे। ४. स्त्री-अंगोपांगादर्शन-स्त्रियों के मनोहर अंग उपांग न देखे। यदि कभी अकस्मात् दृष्टि पड़ जाए तो सहसा हटा ले, फिर उसका ध्यान न करे। कुड्यान्तर-शब्द-श्रवणादि-वर्जन—दीवार आदि की आड़ से स्त्री के शब्द, गीत, रूप आदि न सुने और न देखे। ६. पूर्व भोगाऽस्मरण-पहले भोगे हुए भोगों का स्मरण न करना। प्रणीत भोजन-त्याग-विकारोत्पादक गरिष्ठ भोजन न करे । ८. अतिमान भोजन-त्याग-रूखा-सूखा भोजन भी अधिक न करे। आधा पेट अन से भरे, आधे में से दो भाग पानी के लिए और एक भाग हवा के लिए छोड़ दे। ९. विभूषा-परिवर्जन-अपने शरीर की विभूषा-सजावट न करे । दस श्रमण धर्म १. क्षान्ति-क्रोध न करना। » Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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