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उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण
आठ मदस्थान
१. जाति मद—ऊँची और श्रेष्ठ जाति का अभिमान । २. कुलमद-ऊँचे कुल का अभिमान । ३. बलमद-अपने बल का घमण्ड ।
__ रूप मद-अपने रूप, सौन्दर्य का गर्व । ५. तप मद-उग्र तपस्वी होने का अभिमान । ६. श्रुत मद-शास्त्राभ्यास अर्थात् पाण्डित्य का अभिमान । ७. लाभ मद-अभीष्ट वस्तु के मिल जाने पर अपने लाभ का अहंकार।
८. ऐश्वर्य मद-अपने ऐश्वर्य अर्थात् प्रभुत्व का अहंकार । नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति
१. विविक्त-वसति सेवन-स्त्री, पशु और नपुंसकों से युक्त स्थान में न
ठहरे।
२. स्त्री कथा परिहार-स्त्रियों की कथा-वार्ता, सौन्दर्य आदि की चर्चा न
करे। निषद्यानुपवेशन-स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठे, उसके उठ
जाने पर भी एक मुहूर्त तक उस आसन पर न बैठे। ४. स्त्री-अंगोपांगादर्शन-स्त्रियों के मनोहर अंग उपांग न देखे। यदि
कभी अकस्मात् दृष्टि पड़ जाए तो सहसा हटा ले, फिर उसका ध्यान न करे। कुड्यान्तर-शब्द-श्रवणादि-वर्जन—दीवार आदि की आड़ से स्त्री के
शब्द, गीत, रूप आदि न सुने और न देखे। ६. पूर्व भोगाऽस्मरण-पहले भोगे हुए भोगों का स्मरण न करना।
प्रणीत भोजन-त्याग-विकारोत्पादक गरिष्ठ भोजन न करे । ८. अतिमान भोजन-त्याग-रूखा-सूखा भोजन भी अधिक न करे।
आधा पेट अन से भरे, आधे में से दो भाग पानी के लिए और एक
भाग हवा के लिए छोड़ दे। ९. विभूषा-परिवर्जन-अपने शरीर की विभूषा-सजावट न करे । दस श्रमण धर्म
१. क्षान्ति-क्रोध न करना।
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