Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Chandanashreeji
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 467
________________ ४३४ उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण गाथा २१-अमोघ का शाब्दिक अर्थ व्यर्थ न होना है। जो चूकता नहीं है, वह अमोघ है। काल अमोघ है, जो किसी क्षण भी ठहरता नहीं है। केवल रात्रि ही अमोघ नहीं है। उपलक्षण से काल का हरक्षण अमोघ अध्ययन १५ गाथा १-संस्तव के दो अर्थ हैं-स्तुति और परिचय । यहाँ परिचय अर्थ अभिप्रेत है । चूर्णि के अनुसार संस्तव के दो प्रकार हैं-संवास संस्तव और वचन संस्तव । असाधु जनों के साथ रहना 'संवास संस्तव' है, और उनके साथ अलाप संलाप करना 'वचनसंस्तव' है। साधक के लिए दोनों ही निषिद्ध हैं। बृहद्वृत्ति में आगे के २१वें अध्ययन की, २१वीं गाथा में आए संस्तव के दो प्रकार बताए हैं—पितृपक्ष का. सम्बन्ध 'पूर्व संस्तव' और पश्चाद्भावी श्वशुरपक्ष एवं मित्रादि का सम्बन्ध ‘पश्चात्संस्तव' है। गाथा ७–यहाँ दश विद्याओं का उल्लेख है। उनमें दण्ड, वास्तु और स्वर से सम्बन्धित तीनों विद्याओं को छोड़कर शेष सात विद्याएँ निमित्त के अंगों में परिगणित हैं। अंगविज्जा (१-२) के अनुसार अंग, स्वर, लक्षण, व्यंजन, स्वप्न, छिन्न, भौम और अन्तरिक्ष-ये अष्टांग निमित्त हैं। उत्तराध्ययन की उक्त गाथा में व्यंजन का उल्लेख नहीं है। वस्त्र आदि में चूहे या कांटे आदि के द्वारा किए गए छेदों पर से शुभाशुभ का ज्ञान करना, छिन्न निमित्त है। भूकम्प आदि के द्वारा, अथवा अकाल में होने वाले वेमौसमी पुष्प-फल आदि से शुभाशुभ का ज्ञान करना, भौम निमित्त है। भूमिगत धन एवं धातु आदि का ज्ञान करना भी ‘भौम' है। ___आकाश में होने वाले गन्धर्व नगर, दिग्दाह और धूलिवृष्टि आदि तथा ग्रहयोग आदि से शुभाशुभ का ज्ञान करना, अन्तरिक्ष निमित्त है । स्वप पर से शुभाशुभ का ज्ञान करना स्वप्न निमित्त है। शरीर के लक्षण तथा आँख फड़कना आदि अंगविकारों पर से शुभाशुभ का ज्ञान करना, क्रमश: लक्षणनिमित्त और अंग विकार निमित्त हैं। दण्ड के गांठ आदि विभिन्न रूपों पर से शुभाशुभ का ज्ञान करना, दण्ड विद्या है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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