________________
३० - तपो - मार्ग - गति
1
६. एवं तु संजयस्सावि पावकम्मनिरासवे भवकोडीसंचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जई ॥
७.
तहा ।
सो तवो दुविहो वुत्तो बाहिरब्भन्तरो बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमभन्त
तवो ॥
८. अणसणमूणोयरिया
९.
भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ । कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥ इत्तिरिया दुविहा अणसणा भवे । इत्तिरिया सावकखा निरवकंखा बिइज्जिया ॥
मरणकाले
१०. जो
सो इत्तरियतव सो समासेण छव्विहो । सेढितवो पयरतवो घोय तह होइ वग्गो य ॥ ११. तत्तो य वग्गवग्गो उ पंचमो छुट्टओ पइण्णतवो । मणइच्छिय-चित्तत्थो नायव्वो होइ इत्तरियाओ ॥
१२. जा सा अणसणा मरणे दुविहा सा वियाहिया । सवियार - अवियारा कायचिट्ठ पई भवे ॥
Jain Education International
३२३
उसी प्रकार संयमी के करोड़ों भवों के संचित कर्म, पाप कर्म के आने के मार्ग को रोकने पर तप से नष्ट होते हैं ।
वह तप दो प्रकार का हैबाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य तप छह प्रकार का है । इस प्रकार आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का कहा है।
अनशन, ऊनोदरिका, भिक्षाचर्या, रस- परित्याग, काय - क्लेश और संलीनता - यह बाह्य तप है ।
अनशन तप के दो प्रकार हैंइत्वरिक और मरणकाल । इत्वरिक सावकांक्ष (निर्धारित अनशन के बाद पुन: भोजन की आकांक्षा वाला ) होता है । मरणकाल निरवकांक्ष (भोजन की आकांक्षा से सर्वथा रहित) होता है ।
संक्षेप से इत्वरिक - तप छह प्रकार
का है
श्रेणि तप, प्रतर तप, घन-तप और वर्ग -तप
पाँचवाँ वर्ग-वर्ग तप और छठा प्रकीर्ण तप । इस प्रकार मनोवांछित नाना प्रकार के फल को देने वाला ' इत्वरिक' अनशन तप जानना चाहिए ।
कायचेष्टा के आधार पर मरणकाल - सम्बन्धी अनशन के दो भेद हैं— सविचार ( करवट बदलने आदि चेष्टाओं से सहित) और अविचार ( उक्त चेष्टाओं से रहित) ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org