________________
२६-सामाचारी
२७३
२०. तम्मेव य नक्खत्ते
गयणचउब्भागसावसेसंमि। वेरत्तियं पि कालं पडिलेहित्ता मुणी कुज्जा ।।
२१. पुव्विल्लंमि चउब्भाए।
पडिलेहिताण भण्डयं । गुरुं वन्दित्तु सज्झायं । कुज्जा दुक्खविमोक्खणं॥
२२. पोरिसीए चउब्भाए
वन्दित्ताण तओ गुरूं। अपडिक्कमित्ता कालस्स भायणं पडिलेहए।
वही नक्षत्र जब आकाश के अन्तिम चतुर्थ भाग में आता है, अर्थात् रात्रि का अन्तिम चौथा प्रहर आ जाता है, तब उसे 'वैरात्रिक काल' समझकर मुनि स्वाध्याय में प्रवृत्त हो।
विशेष दिनकृत्य
दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में पात्रादि उपकरणों का प्रतिलेखन कर, गुरु को वन्दना कर, दुःख से मुक्त करने वाला स्वाध्याय करे। ____ पौरुषी के चतुर्थ भाग में, अर्थात् पौन पौरुषी बीत जाने पर गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण (कायोत्सर्ग) किए बिना ही भाजन का प्रतिलेखन करे। प्रतिलेखना की विधि___मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर गोच्छग का प्रतिलेखन करे । अंगुलियों से गोच्छग को पकड़कर वस्त्र का प्रतिलेखन करे।
सर्वप्रथम ऊकडू आसन से बैठे, फिर वस्त्र को ऊँचा रखे, स्थिर रखे
और शीघ्रता किए बिना उसका प्रतिलेखन करे-चक्ष से देखे। दसरे में वस्त्र को धीरे से झटकाए और तीसरे में वस्त्र का प्रमार्जन करे। प्रतिलेखन के दोष
प्रतिलेखन के समय वस्त्र या शरीर को न नचाए, न मोड़े, वस्त्र को दृष्टि से अलक्षित न करे, वस्त्र का दिवार आदि से स्पर्श न होने दे। वस्त्र के छह पूर्व
और नौ खोटक करे। जो कोई प्राणी हो, उसका विशोधन करे।
२३. मुहपोत्तियं पडिलेहिता
पडिलेहिज्ज गोच्छगं। गोच्छगलइयंगुलिओ
वत्थाइं पडिलेहए। २४. उड्डूं थिरं अतुरियं
पुव्वं ता वत्थमेव पडिलेहे। तो बिइयं पफोडे तइयं च पुणो पमज्जेज्जा॥
२५.
अणच्चावियं अवलियं अणाणुबन्धि अमोसलिंचेव॥ छप्पुरिमा नव खोडा पाणीपाणविसोहणं॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org