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२३-केशि-गौतमीय
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६४. साहु गोयम! पन्ना ते
छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मझं
तं मे कहसु गोयमा!॥ ६५. महाउदग-वेगेणं
बुज्झमाणाण पाणिणं। सरणं गई पइट्ठा य दीवं कं मन्नसी मुणी?
केशीकुमार श्रमण___“गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संदेह दूर किया। मेरा एक और भी संदेह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें।”
-"मुने! महान् जल-प्रवाह के वेग से बहते-डूबते हुए प्राणियों के लिए शरण, गति, प्रतिष्ठा और द्वीप तुम किसे मानते हो?"
गणधर गौतम
-“जल के बीच एक विशाल महाद्वीप है। वहाँ महान् जल-प्रवाह के वेग की गति नहीं है।"
अस्थि एगो महादीवो वारिमझे. महालओ। महाउदगवेगस्स गई तत्थ न विज्जई॥
६७. दीवे य इइ के वुत्ते?
केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी।
केशीकुमार श्रमण
-“वह महाद्वीप कौन-सा है?" केशी ने गौतम को कहा।
केशी के पूछने पर गौतम ने यह
कहा
६८. जरा-मरणवेगेणं
बुज्झमाणाण पाणिणं। धम्मो दीवो पइट्ठा य गई सरणमुत्तमं ॥
गणधर गौतम___“जरा-मरण के वेग से बहते-डूबते हए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण
६९. साहु गोयम! पन्ना ते
छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा!।
केशीकुमार श्रमण
-“गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संदेह दूर किया, मेरा एक और भी संदेह है। गौतम ! उसके विषय में भी मझे कहें।"
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