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उत्तराध्ययन सूत्र
७०. अण्णवंसि महहंसि
नावा विपरिधावई। जंसि गोयममारूढो कहं पारं गमिस्ससि?॥
-"गौतम! महाप्रवाह वाले समुद्र में नौका डगमगा रही है। तुम उस पर चढ़कर कैसे पार जा सकोगे?"
गणधर गौतम
-"जो नौका छिद्रयुक्त है, वह पार नहीं जा सकती है। जो छिद्ररहित है; वही नौका पार जाती है।"
७१. जा उ अस्साविणी नावा
न सा पारस्स गामिणी। जा निरस्साविणी नावा सा उ पारस्स गामिणी॥
७२. नावा य इइ का वुत्ता?
केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥
केशीकुमार श्रमण
-"वह नौका कौन-सी है?" केशी ने गौतम को कहा।
केशी के पूछने पर गौतम ने यह कहा
गणधर गौतम
--"शरीर नौका है, जीव नाविक-मल्लाह है और संसार समुद्र है, जिसे महर्षि तैर जाते हैं।”
७३. सरीरमाहु नाव ति
जीवो वुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो जं तरन्ति महेसिणो।
७४. साहु गोयम! पन्ना ते
छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ माझं
तं मे कहसु गोयमा !॥ ७५. अन्धयारे तमे घोरे
चिट्ठन्ति पाणिणो बहू। को करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगमि पाणिणं?॥
केशीकुमार श्रमण
-“गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संदेह दूर किया। मेरा एक और भी संदेह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें।"
__भयंकर गाढ अन्धकार में बहुत से प्राणी रह रहे हैं। सम्पूर्ण लोक में प्राणियों के लिए कौन प्रकाश करेगा?”
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