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१० - द्रुमपत्रक
२४. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से जिब्भ-बले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।।
२५. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से फास- बले हाई समयं गोयम ! मा पमायए ।
सरीरयं
केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से सव्वबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।।
२६. परिजूरइ ते
गण्ड विसुइया आयंका विविहा फुसन्ति ते । विवss विद्धंस ते सरीरयं समयं गोयम ! मा पमायए ।
२७. अरई
सिणेहमप्पणो
कुमुयं सारइयं व पाणियं । सव्वसिणेहवज्जिए
समयं गोयम ! मा पमायए ।।
२८. वोछिन्द
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तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा हैं, केश सफेद हो रहे हैं । रसग्राहक जिह्वा की शक्ति नष्ट हो रही है। अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत
कर ।
तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं । स्पर्शन - इन्द्रिय की स्पर्शशक्ति क्षीण हो रही है । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत
कर ।
तुम्हारा शरीर कृश हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं। एक तरफ से सारी शक्ति ही क्षीण हो रही है । इस स्थिति में गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
वात-विकार आदि से जन्य चित्तो-द्वेग, फोड़ा-फुन्सी, विसूचिकाहैजा - वमन तथा अन्य भी शीघ्र - घाती विविध रोग शरीर में पैदा होने पर शरीर गिर जाता है, विध्वस्त हो जाता है । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर ।
जैसे शरद्-कालीन कुमुद (चन्द्र विकासी कमल) पानी से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार तू भी अपना सभी प्रकार का स्नेह (लिप्तता) का त्याग कर निर्लिप्त बन । गौतम ! इसमें तू समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
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