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________________ ९० १८. अहीणपंचिन्दियत्तं पि से लहे उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिसेवए समयं गोयम ! मा पमायए । जणे १९. लद्धूण वि उत्तमं सुई सद्दहणा पुरावि दुल्लहा । मिच्छत्तनिसेवाए समयं गोयम ! मा पमायए ।। जणे २०. धम्मं पि हु सद्दहन्तया दुल्लहया कारण फासया । इह कामगुणेहि मुच्छिया समयं गोयम ! मा पमायए । सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से सोयबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। २१. परिजूरइ ते २२. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से चक्खुबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए । २३. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से घाणबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र अविकल अर्थात् पूर्ण पंचेन्द्रियत्व की प्राप्ति होने पर भी श्रेष्ठ धर्म का श्रवण पुनः दुर्लभ है। क्योंकि कुतीर्थिकों की उपासना करने वाले भी देखे जाते हैं । इसलिए गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । उत्तम धर्म की श्रवणरूप श्रुति मिलने पर भी उस पर श्रद्धा होना दुर्लभ है। क्योंकि बहुत से लोग मिथ्यात्व का सेवन करते हैं । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । धर्म की श्रद्धा होने पर भी तदनुरूप काय से स्पर्श अर्थात् आचरण होना दुर्लभ है। बहुत से धर्मश्रद्धालु भी काम भोगों में आसक्त हैं । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश (सिर के बाल सफेद हो रहे हैं। तथा श्रवणशक्ति कमजोर हो रही है । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं, आँखों की शक्ति क्षीण हो रही है । अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं । घ्राण शक्ति हीन हो रही है । अत: गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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