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________________ १०-द्रुमपत्रक १२. चउरिन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।। कालं संखिज्जसन्नियं समयं गोयम! मा पमायए। चतुरिन्द्रय काय में गया हआ जीव उत्कर्षत: संख्यात काल तक रहता है । इसलिए गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। १३. पंचिन्दियकायमइगओ उक्कोसं • जीवो उ संवसे। सत्तटु-भवग्गहणे समयं गोयम! मा पमायए।। पंचेन्द्रिय काय में गया हुआ जीव उत्कर्षत: सात आठ भव तक रहता है। इसलिए गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। १४. देवे नेरइए य अइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे। इक्किक्क-भवग्गहणे समयं गोयम! मा पमायए। देव और नरक योनि में गया हुआ जीव उत्कर्षत: एक-एक भव (जन्म) ग्रहण करता है। अत: गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। १५. एवं भव-संसारे संसरइ सुहासुहेहि कम्मेहि। जीवो पमाय-बहुलो समयं गोयम! मा पमायए। प्रमादबहुल जीव शुभाशुभ कर्मों के कारण संसार में परिभ्रमण करता है। इसलिए गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । १६. लद्धण वि माणसत्तणं आरिअत्तं गुणरावि दुल्लहं। बहवे दसुया मिलेक्खुया समयं गोयम! मा पमायए। १७. लखूण वि आरियत्तणं अहीणपंचिन्दियया हु दुल्लहा विगलिन्दियया हु दीसई समयं गोयम! मा पमायए। दुर्लभ मनुष्य जीवन पाकर भी आर्यत्व पाना दुर्लभ है । क्योंकि मनुष्य होकर भी बहुत से लोग दस्यु और म्लेच्छ होते हैं। अत: गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । आर्यत्व की प्राप्ति होने पर भी अविकल पंचेन्द्रियत्व की प्राप्ति होना दुर्लभ है। क्योंकि बहुत से जीवों को विकलन्द्रियत्व भी देखा जाता है। अत: गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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