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उत्तराध्ययन सूत्र
पुढविक्कायमइगओ
पृथ्वीकाय में गया हआ-अर्थात् उक्कोसं जीवो उ संवसे। उत्पन्न हुआ जीव (पुन: पुन: जन्म कालं संखाईयं मरणकर) उत्कर्षत:-अधिक से अधिक समयं गोयम ! मा पमायए। असंख्य काल तक रहता है। अत:
गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत
कर। आउक्कायमइगओ
अप्काय (जल) में गया हुआ जीव उक्कोसं जीवो उ संवसे।। उत्कर्षत: असंख्यात काल तक रहता कालं संखाईयं है। अत: गौतम ! समय मात्र का भी समयं गोयम! मा पमायए । प्रमाद मत कर। तेउक्कायमइगओ
तेजस् काय (अग्नि) में गया हुआ उक्कोसं जीवो उ संवसे। जीव उत्कर्षत: असंख्यात काल तक कालं
संखाईयं रहता है। अत: गौतम ! क्षणभर का भी समयं गोयम! मा पमायए। प्रमाद मत कर। वाउक्कायमइगओ
वायुकाय में गया हुआ जीव उक्कोसं जीवो उ संवसे। उत्कर्षत: असंख्यात काल तक रहता कालं
संखाईयं है। अत: गौतम ! क्षण भर का भी समयं गोयम! मा पमायए। प्रमाद मत कर। वणस्सइकायमइगओ
वनस्पति काय में गया हुआ जीव उक्कोसं जीवो उ संवसे उत्कर्षतः दुःख से समाप्त होने वाले कालमणन्तदुरन्तं
अनन्त काल तक रहता है। अत: समयं गोयम! मा पमायए। गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत
कर। १०. बेइन्दियकायमइगओ
द्वीन्द्रिय काय में गया हुआ जीव उक्कोसं जीवो उ संवसे। उत्कर्षत: संख्यात काल तक रहता है। कालं संखिज्जसन्नियं अत: गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद समयं गोयम! मा पमायए ।। मत कर। तेइन्दियकायमइगओ
त्रीन्द्रिय काय में गया हुआ जीव उक्कोसं जीवो उ संवसे।। उत्कर्षत: संख्यात काल तक रहता है। कालं संखिज्जसत्रियं अत: गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद समयं गोयम ! मा पमायए॥ मत कर ।
११.
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