Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 612
________________ परिशिष्ट-१ [१७ एवं तु अहिजेते एवं तु चोइयम्मी एवं तु णारयम्मी एवं तु ताहि सिट्टे एवं तु दोन्नि वारा एवं तु निम्मवेंती एवं तु पासत्यादिएसु एवं तु भणंतेणं एवं तुमं पि चोदग एवं तु मुसावाओ एवं तु विदेसत्थे एवं तु समासेणं एवं तु होति चउरो एवं तू परिहारी एवं दप्पपणासित एवं दप्पेण भवे एवं दब्भादीसुं एवं दोण्णि वि अम्हे एवं धरती सोही एवं न ऊ दुरुस्से एवं नवभेदेणं एवं नाणे तह दंसणे एवं पट्टगसरिसं एवं परिक्खितम्मी एवं परिच्छिऊणं एवं पादोवगमं एवं पासस्थमादी एवं पि अठायंते एवं पि कीरमाणे एवं पि दुल्लभाए एवं पि भवे दोसा एवं पि विमग्गंतो एवं पुव्वगमेणं एवं बारसमासा एवं बारसवरिसे एवं भणिते भणती एवं भणितो संतो एवं मग्गति सिस्सं २१५७ | एवं वइ कायम्मी ४१७२ एवं विपरिणामितेण ४३७६ एवं सदयं दिज्जति ३०७४ एवं सारणवतितो ३४७१ एवं सिद्धग्गहणं ३७०० एवं सिद्धे अत्थे २६०३ एवं सिरिघरिए वी ४२१३ एवं सीमच्छेदं ३३६ एवं सुत्तविरोहो ४४८२ एवं सुद्धे निग्गम २६१२ एवं सुभपरिणाम ४३० एवं सो पासत्थो ३२०४ एवं होति विरोधो ६२६ एव तुलेऊणप्पं २३२७ एव न करेंति सीसा •४४६३ एवमणुण्णवपाए २४४१ एवमदिण्णवियारे १३३३ एवमेक्केक्कियं भिक्खं ४२१२ एवमेगेण दिवसेण १६६७ एवमेसा तु खुड्डीया ४०२३ एवाऽऽणह बीयाई ३६७५ एवाणाए परिभवो २६४३ एवाहारेण विणा १४४३ एविध वी दट्ठव्वं ४४५५ एस अगीते जयणा ४४२६ एस जतणा बहुस्सुते ३६३१ एस तवं पडिवज्जति १६०२ एस परिणामगो ऊ ५७१ एस विधी तू भणितो २७३३ एस सत्तण्ह मज्जाया २७२८ एसा अट्ठविधा खलु ९६८ एसा अविधी भणिता २८७५ एसा खलु बत्तीसा ४६३ एसाऽऽगमववहारो ३२११ एसा गहिते जतणा ४१६३ एसा गीते मेरा १२८१ एसा जयणा उ तहिं १४५८ | एसाऽऽणाववहारो ४०२२ ३४३१ ४२०८ ८५८/२ ३६१० २०७० १६१४ ३६५४ १७३३ १६१६ ८३२ ८४६ ६२२ २६४१ २६६८ ३४६५ ३५२० ३७८३ २७४० ३८०७ ४४५० २५६१ ४३७१ ३१७५ २८१ २७६३ ५४६ ४६२६ ३४५६ ३२८० ४०८२ ३८६५ ४१२४ ४४३० ३४१६ १४६५ २७६६ ४५०२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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