Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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११४ ]
परिशिष्ट-७
अइयण-भक्षण।
(गा. १०१६) अइया-आर्यिका।
(गा. ३२४७) अंगोहलि-अपूर्ण स्नान। (गा. ४२०५ टी.प.५२) अंडक-मुख।
केन कारणेनाण्डकमुखमुच्यते तत आह---यतो यस्मात् चित्रकर्मणि गर्भे उत्पाते वा पूर्वं देहस्य वदनं मुखं निष्पद्यते पश्चात् शेषं ततः प्रथमभावितया मुखमण्डकमित्युच्यते।
(गा. ३६८३ टी. प. ५७) अंतिल्ल-अंतिम ।
(गा. १३८२ टी.प.७) अंबिली-इमली।
(गा. ४४५१) अक्खोडभंग-राजकुल में दातव्य द्रव्य, बेगार तथा सैनिक आदि की भोजन-व्यवस्था। (गा. २१२ टी.प.१०) अगड-कुआ।
(गा. ३७६०) अचियत्त-अप्रीतिकर।
(गा. २६२) • अच्छ-प्रतीक्षा करना।
(गा. ८२४) अच्छण-अवलोकन, मतिश्रवण, दूर या नजदीक से निवर्तित होना।
(गा. ८१६) अच्छिक्क-अस्पृष्ट ।
(गा. १०६३) अजिड्डीय—दिया, प्रस्तुत किया। (गा. ४५२ टी.प.६४) अडयाल—अड़तालीस।
(गा. २०३३) अद्वित-चढ़ाया, आरोपित किया। (गा. ४५२ टी.प.६४) | अणवदग्ग-अनंत।
अणवदग्गं कालतोऽपरिमाणं (गा. १६८६ टी.प.६८) अणिद्दोच–भयसहित, अस्वस्थ, सदोष । अणिदोच्चमित्यनिर्भयमस्वस्थम् ।
(गा. ३१२६ टी.प.५१) अणंतक-वस्त्र।
(गा. २८५० टी.प.४) अणोरपार--अनंत, अपार ।
(गा. १०२२) अतरंत-असमर्थ।
(गा. १७७४) अतित्थित-अतिक्रान्त। (गा. ३८६१ टी.प.६) अत्यारिय-कर्मकर, वेतन लेकर खेत में धान आदि काटने वाला नौकर। ये मूल्यप्रदानेन शालिलवनाय कर्मकराः क्षेत्रे क्षिप्यन्ते ते अस्तारिकाः। (गा. २६५३ टी.प.३८) अद्दण-भयभीत, आकुल ।
(गा. २४५३) अद्दण्ण-असत्य।
(गा. २४५५) अद्दाय-वह विद्या, जिससे दर्पण में प्रतिबिम्बित रोगी के बिम्ब को पोंछने से रोगी नीरोग हो जाता है।
(गा. २४३६ टी.प.२६)
अद्धा-काल।
(गा. २५०४) अपरितंत-अपरिश्रान्त।
(गा. १४२७) अप्पायण निर्वाह ।
(गा. १३४८) अप्पाहण-संदेश देना।
(गा. ७६२) अभिनिबगडा—वह परिक्षेप, जिसमें प्रवेश और निष्क्रमण का एक द्वार हो, पर भीतर अनेक घर हों।
(गा. २७२६ टी.प.५०) अमाघतण-अमारि।
(गा. ३१४८) अमेरतो-अमर्यादाशील । (गा. १८६ टी.प.३) अम्मा-मां।
(गा. १६८१) • अम्मा–निकट पहुंचना, पीछा करना। (गा. १०२१) अलंद-नट।
(गा. ८८७) अल्लीण-आया।
(गा. ३२३ टी.प.४६) अविरल्ल-अविस्तारित, एकत्रित । (गा. १७७३) अविहाड-१. अप्रकट,
(गा. २६६२) २. अप्रगल्भ।
(गा. ३६६६) अवोगिल्ल-अवाचाल। अवोगिल्लमवाचालं।
(गा. २६५६) अबंग-अक्षत।
(गा. २८१२) अब्बो—संबोधन सूचक अव्यय। (गा. २८६२) अबोगड-१.अविकृत । अव्वोगडं अविगडं। (गा.३३५६)
२. अविभक्त। अव्याकृतं नाम दायिनां सामान्यं न पुनस्तैर्विभक्तं ।
(गा. ३३५५ टी.प.६१) असंथर-अतृप्त।
(गा. १७६५) असंथरंत-समर्थ न होता हुआ।
(गा. २५१५) आउट्ट-प्रणत।
(गा. २५४५) आउट्टि-असंयम।
(गा. ६१) आउट्टेऊण-अपने अनुकूल बनाकर । (गा. ३४२६) आगलण-वैकल्य, विकलता।
(गा. ६६२) आडंबर-पाणजातीय लोगों का यक्ष-विशेष ।
(गा. ३१४६ टी. प.५५) आदंचण-शुद्धि का प्रयत्न विशेष । (गा. ५०७) आदेस-अतिथि, पाहुना।
___ आदेशाः नाम प्राघूर्णकाः। (गा. १०१५ टी.प.११) आलिंगिणी-रूई का बड़ा बिछौना । (गा. ४३४४ टी.प.७१) आवाह-वर पक्ष की ओर से दिया जाने वाला भोज ।
आवाहो दारकपक्षिणाम्। (गा. ३७३६ टी.प.८)
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