Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 754
________________ परिशिष्ट-८ [१५६ करने नहीं देता। उन्हें कठोर वचनों से ताड़ना देता और कर्मकरों को पूरा वेतन भी नहीं देता था। इन सब दुःखों से पीड़ित होकर सभी कर्मकर काम छोड़कर भाग गए। प्रासाद अर्धनिर्मित ही रह गया। राजा ने सारा वृत्तान्त जाना और अमात्य को दंडित किया। उसे अमात्यपद से हटाकर उसका सर्वस्व अपहृत कर लिया। (गा. ३६६२-६४ टी. प. ५६) १२२. अट्टण मल्ल उज्जयिनी नगरी में अट्टण नामक मल्ल रहता था। वह मल्ल विद्या में अत्यंत निपुण था । वह सदा विजयी होता था। समय बीता। वह वृद्ध हो गया। एक बार वह सोपारक नगर में मल्ल युद्ध करने गया और वहां पराजित हो गया। उसने प्रतिशोध की भावना से फलही नामक व्यक्ति को मल्लविद्या में निपुण किया। वह सोपारक नगरी में गया और मात्सिक मल्ल के साथ मल्लयद्ध लड़ा। उस दिन जय-पराजय का निर्णय नहीं हो सका। दोनों मल्ल अपने-अपने स्थान पर गए। फलही मल्ल के परिचारकों ने पूछा-कहां-कहां चोट आई है। हम परिकर्म कर उसे ठीक कर देंगे। फलही मल्ल ने सब कुछ बता दिया। परिचारकों ने उचित विधि से शरीर का परिकर्म कर उसे स्वस्थ कर दिया। मात्सिक मल्ल गर्व से उन्मत्त हो उठा। परिचारकों के पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया। उसने शरीर की पीड़ा को छुपा लिया। शरीर का परिकर्म नहीं हुआ। तीसरे दिन मल्लयुद्ध में वह पराजित हो गया। (गा. ३८४० टी. प. ३) १२३. संस्कारदात्री मां ही है ___ एक बालक अधूरा नहाकर बाहर खेलने चला गया। वह खेलते-खेलते एक तिलों के ढेर पर पहुंचा और उस ढेर में घुस गया। लोगों ने उसे बालक समझ कर नहीं रोका। शरीर गीला था, इसलिए उस पर तिल लग गए। वह तिलों सहित घर आया। मां ने तिल देखे। उसके शरीर से सारे तिल झाड़ दिए और उन्हें एक पात्र में संग्रहीत कर लिया। मां के मन में तिलों का लोभ जागा और उसने पुनः बालक को अधूरा स्नान करा कर भेजा। वह पुनः तिलों के ढेर पर गया और गीले शरीर से उस ढेर में प्रवेश कर तिलों सहित घर आ गया। मां ने उसे नहीं डांटा, न मनाही की। वह धीरे-धीरे तिल चुराने वाला बड़ा चोर बन गया। एक बार चोरी करते हुए उसे राजपुरुषों ने पकड़ लिया। राजा ने उसके वध की आज्ञा दे दी। वह मारा गया। राजा ने सोचा, यह बालक मां के दोष से चोर हुआ है। राजपुरुषों ने माता को दंडित करने के लिए उसके स्तन काट डाले। मां को दंड मिल गया। एक बार एक दूसरा बालक भी अपूर्ण स्नान कर तिलों के ढेर में जा छिपा। उसके गीले शरीर पर तिल चिपक गए। वह घर गया। मां ने उसे.डांटते हुए कहा, पुनः ऐसा मत करना। उसने तिल शरीर से झाड़ कर मल स्वामी को दे दिए। उस बालक में चोरी की आदत नहीं पडी। वह सखपर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगा। मां को भी स्तनछेद जैसी पीड़ा सहन नहीं करनी पड़ी। (गा. ४२०८ टी. प. ५२) १२४. दूध रक्त बन गया - कलिंग जनपद में कांचनपुर नाम का नगर था। वहां अनेक बहुश्रुत आचार्य रहते थे। उनका शिष्य परिवार बृहद् था । एक बार वे अपने शिष्यों को सूत्र और अर्थ की वाचना देकर संज्ञाभूमि में गए। अन्तराल में उन्होंने एक विशाल वृक्ष के नीचे एक स्त्री को रोते हुए देखा। दूसरे, तीसरे दिन भी यही देखा । आचार्य को आशंका हुई। उन्होंने उस स्त्री से पूछा-तुम क्यों रो रही हो ? उसने कहा- मैं इस नगर की अधिष्ठात्री देवी हूं। यह नगर शीघ्र ही जल-प्रवाह से आप्लावित होकर नष्ट हो जाएगा। यहां अनेक मुनि स्वाध्यायशील हैं। उनके विनाश को सोचकर मैं रो रही हूं। आचार्य ने पूछा-इस बात का प्रमाण क्या है ? उसने कहा-अमुक तपस्वी मुनि के पारणक में लाया हुआ दूध रक्त बन जाएगा। जहां जाने से वह पुनः स्वाभाविक रूप में आएगा वहां सुभिक्ष होगा और वहां सुखपूर्वक रहा जा सकेगा। दूसरे दिन तपस्वी मुनि के पारणक में लाया हुआ दूध रक्त में बदल गया। तब संघ के प्रमुख व्यक्ति एकत्रित हुए, पर्यालोचन किया और समूचे संघ के साधुओं ने अनशन कर झला । (गा. ४२७८ टी. प. ६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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