Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 837
________________ २४२ ] परिशिष्ट-१६ प) . पकप्प (ग्रंथ) पच्चक्खाण (ग्रंथ) पज्जोय (राजा) पण्णत्ति (ग्रंथ) पमेह (रोग) परिकम्म (ग्रंथ) परिहार (तप) पवाल (रत्न) पामा (रोग) पारसीक (देशवासी) पारावय (तिर्यञ्च) पारिणामिय (बुद्धि) पालक्क (पुरोहित) पाहुड (ग्रंथ) पिंडेसणा (एक अध्ययन) पिढर (पात्र) पित्तमुच्छा (रोग) पिवीलिया (तिर्यञ्च) पुंडरिय (एक अध्ययन) पुरंदरजसा (रानी) पुव्वगत (ग्रंथ) पुस्सभूति (आचार्य) पुहवी (रानी) पूसमित्त (मुनि) पोतणपुर (नगर) पोर (गण) फणस (वृक्ष) फलही (मल्ल) बइल्ल (तिर्यञ्च) बंभचेर (एक अध्ययन) बालज (वस्त्र) बाहु (आचार्य) बोधियसाला (शाला) भंडी (वाहन) भंभी (ग्रंथ) भगंदर (रोग) भत्तपरिण्णा (ग्रंथ) भद्दबाहु (आचार्य) (गा. ४३१) | भम (रोग) (गा. ४३५) भरह (चक्रवर्ती) (गा. ७८४) भरह (कर्मभूमि) (गा. ४६५६) भरुयच्छ (नगर) (गा. ३७६७) भल्ल (तिर्यञ्च) - (गा. १८२७) मंगु (आचार्य) (गा. १५३७) मंडलिडक्क (तिर्यञ्च) (गा. ६५०) मंडुग (तिर्यञ्च) (गा. २७६२ टी. प. ६२) मगधसेना (ग्रंथ) (गा. ८६८ टी. प. १२२) मगर (तिर्यञ्च) (गा. २८६४) मच्छिय (मल्ल) (गा. २३८६) मच्छिय (तिर्यञ्च) (गा. ४४१७) मज्जार (तिर्यञ्च) (गा. ६४६) मत्तंग (वृक्ष) (गा. १५३२, १५२६) मधुरा (नगर) (गा. ३८३०) मरहट्ठ (देश) (गा. २२७१) मरहट्ठय (देशवासी) (गा. ४४२१) मरुग (ब्राह्मण) (गा. ११३३) मलयवती (ग्रंथ) (गा. ४४१७) मल्ल (गण) (गा. १८२७) मसग (तिर्यञ्च) (गा. ११७८) महकप्पसुय (ग्रंथ) (गा. २६४५) महकाल (श्मशान) (गा. १७०५) महपाण (ध्यान) (गा. १०८१) महल्लीविमाणपविभत्ति (ग्रंथ) (गा. १३६६) महसिलकंटक (युद्ध) (गा. ३७४४) महसुमिणभावणा (ग्रंथ) (गा. ३८४०) महामह (उत्सव) (गा. ८८५) महिस (तिर्यञ्च) (गा. १५३२) महुरा (नगरी) (गा. ३७३६) माढर (ग्रंथ) (गा. २७०३) मालव (देश) (गा. ३७२३ टी. प. ५) मासय (माषक) (गा. ४४६) मासुरुक्ख (ग्रंथ) (गा. ६५२) मिग (तिर्यञ्च) (गा. ३२२२) मिगावती (साध्वी) (गा. ४२३१) मुडिंबग (मुनि) (गा. ४४३१) | मुणिसुव्वय (तीर्थंकर) (गा. २२७१) (गा. २७०१) (गा. ४३२२) (गा. १४१४) (गा. ४३८२) (गा. २६८५) (गा. २४४७) (गा. २६२१) (गा २३२०) (गा. १३७०) (गा. ३८४०) (गा. ३१३८) (गा. ३१३८) (गा. १५३४) (गा. ११२६) (गा. १७००) (गा. २६५६) (गा. ४५४) (गा. २३२०) (गा.-१३६६) (गा.३१०६) (गा. २११८, ४६५६) (गा. ७८४) (गा. २७००) (गा. ४६५८) (गा. ४३६३) (गा. ४६६५) (गा. २१२६), (गा. ६४६) (गा. २३३०) (गा. ६५२) (गा. १७८८) (गा. ४.१) (गा. ६५२) (गा. १०४१) (गा. ५६१) (गा. २६५७) (गा. ४४१७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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