Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
________________
परिशिष्ट-१६
-[२४३
मुत्तावलि (आभूषण)
(गा. २६७) मुद्दा (आभूषण)
(गा. ६१३) मुद्दिया (दल्ली)
(गा ३७४४) मुरिय (वंश)
(गा. ३३५८) मुरुंड (राजा)
(गा. १५०१) मूइंग (तिर्यञ्च)
(गा. १७७२) मूलदेव (ब्राह्मण)
(गा. ४५२) मूसग (तिर्यञ्च)
(गा. ३१३६) मोग्गल्ल (पर्वत)
(गा. ४४२३) मोयपडिमा (प्रतिमा)
(गा. ३७६०) मोरंगचूलिया (आभूषण)
(गा. १३६१) रयग (कर्मकर)
(गा. ४३१२) रविगत (नक्षत्र)
(गा. ३१०) रहमुसल (युद्ध)
(गा. ४३६३) रासभ (तिर्यञ्च)
(गा. १३८३) राहु (नक्षत्र)
(गा. ३११) राहुहत (नक्षत्र)
(गा. ३१०) लंखग (मल्ल)
(गा. ७८३) लवसत्तम (देवविशेष)
(गा. २४३३) लाड (देशवासी)
(गा. १७००) लोणियसाला (शाला)
(गा. ३७२५) लोमसिया (वल्ली)
(गा. ३७४४) लोह (मुनि)
(गा. २६७१) इरभूति (आचार्य)
(गा. १४१४) वइरमज्झचंदपडिमा (तपविशेष) (गा. ३८३३) वंसी (वृक्ष)
(गा. ४४२४) वक्यसाला (शाला)
(गा. ३३१६) वग्गचूली (ग्रंथ)
(गा. ४६५६) वग्घ (तिर्यंच)
(गा. ७७३) वत्थूल (वनस्पति)
(गा. ३६३०) वद्धमाण (तीर्थंकर)
(गा. ४६७१) वण (रोग)
(गा. ७००) वरधणुग (आचार्य)
(गा. ११७८) वरुण (देव)
(गा. ४६६२) वरुणोववाय (ग्रंथ)
(गा. ४६६०) ववहार (ग्रंथ)
(गा. ४४३४, ४४३५, ४४३२,
३३, ४६५५) वसभ (तिर्यञ्च)
(गा. ७१३)
वसुदेवहिंडी (ग्रन्थ) वागज (वस्त्र) वाणमंतरमह (उत्सव) वात (रोग) वाल (तिर्यञ्च) विच्छुग (तिर्यञ्च) विड्डेर (नक्षत्र) विण्हु (मंत्री) वियाहपण्णत्ति (ग्रंथ) विलंबि (नक्षत्र) विसूइगा (रोग) वीयाह (ग्रंथ) वीर (मुनि) वीरल्ल (तिर्यञ्च) वीवाह (भोज) वेउब्बियलद्धि (लब्धि) वेलंधरोववाय (ग्रंथ) वेसमणुववाय (ग्रंथ) सउणिया (तिर्यञ्च) संगह (नक्षत्र) संझागत (नक्षत्र) सक्कमह (उत्सव) सग (राजा) सत्थपरिण्णा (एक अध्ययन) सप्प (तिर्यञ्च) सप्पिनिहि (निधि) समुट्ठाणसुय (ग्रंथ) सव्वासि (रोगी) ससिगुत्त (मुनि) साण (तिर्यञ्च) साताहण (राजा) सामाइय (ग्रंथ) सालवाहण (राजा) सालाहण (राजा) साहस्सी (मल्ल) सिंगिय (विष) सिंधवय (वस्त्र) सिद्धायण (स्थान)
(गा २३२०) (गा ३७३६) (गा. १८०४) (गा. ४४१) (गा. ६४२) (गा. १७७२)
(गा. ३१०) (गा. ३३७८) (गा. २१२१)
(गा. ३१०) (गा. ४३६४) (गा. ४६५६) (गा. १७०५) (गा. ३८७५) (गा. ३७३६) (गा. ३३७६) (गा. ४६६०) (गा. ४६६०) (गा. ७७१) (गा ३१०)
(गा. ३१०) (गा. १७३, २१३६)
(गा. ४५५७) (गा. १५२६, १५३१)
(गा. ८१६) (गा. ३७४६) (गा. ४६६३)
(गा. ८४६) (गा. १६६७) (गा. ३६१७) (गा. ११२६) (गा. १८२४) (गा. २६४५) (गा. ११२८) (गा. १५३६) (गा. ३०२६) (गा २८६५) (गा. ३७७०)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860