Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 851
________________ २५६] व्यवहार भाष्य ग्रंथाध्ययन का काल ४६५२-७ चेटक ४३६३-६५ छलना ६२६-२८ छेदसूत्र २३६५ जीतव्यवहार १२, ४५२१-४६ ज्ञातविधि २४४९-२५१८ त्यक्तदेह ३८४०, ३८४१ त्वग्दोष २७८२-२८०२ दत्ति ३८११-१६ दृप्तचित्त ११२३-३६ दोषारोपण १२३०-४८ धारणाव्यवहार ४५०३-२० नय ४६६०-६२ निर्जरा २६३३-३६ नैषेधिकी और अभिशय्या ६२-८६ परिहार २१०-१२ परिहारतप ५३५-५६ परिहारी ६२५, ६६०-७६ १०५४-६३ पश्चात्कृत १८६१-६६ पात्र ३५६५-३६५१ पार्श्वस्थ ८३५-५६ पुरुष ४५५५-८८ पूर्वधर ४३८-४४ प्रकल्पधर १५२३ प्रज्ञप्तिकुशल १४६६-१५०५ प्रतिकुंचना १४६ १५० प्रतिक्रमण ६०,६१ प्रतिमा ३७७८-३८८०, ३८३२-८० प्रतिमाप्रतिपन्न ७७७-८३२ प्रतिसेवना ३८-४१, २२१-२८, ४४६१-४५०२ प्रवचनकुशल १४६५-६८ प्रवर्तिनी ६५८, ६५६ प्रव्रज्या २६२६-५२, ४६३७५१ प्रायश्चित्त ३४-१५०, ४१८०-४२२० प्रायश्चित्तवाहक ४७२-७८, ६०४-११ प्रायश्चित्त व्यवहार ४००६-२७ प्रायश्चित्ताह १५९-६४, ४७६-५०२ भक्ति २६७०, २६७१ भिक्षु १८८-६५ मनःपरिणाम २७५८-६८ महत्तरक ६३० महापानध्यान २७०३ महाशिलाकंटकसंग्राम ४३६३-६५ मास १६६-२०६ मिथ्यात्व २७१३, २७१४ मृतपरिष्ठापन ३२५४-३३०८ मोहचिकित्सा १५६६-१६३४, २८०३-१२ यथाछंद ८६०-७५ रथमुशलसंग्राम ४३६३-६५ राजा ६२७, ६२८, १३०१, २४०८, २४०६ राज्य ६२४-५२, ६६३,१५६४-६७ लवसप्तमदेव २४३३, २४३४ वाचना ३०३२-६६, ३२४०-४२ वाद-विवाद ७११-१५, ७५७७५८, ४११३-१५ वास्तु ३७४७४६ विद्या २४३६-४३ विनय ६२-६७ विनयप्रतिपत्ति ४१२६-५५ विवेक १०८, १०६... विष ३०२८-३१ विहार ६६५-१०२६ वृद्धावास २२५६-२२६६ वैयावृत्त्य ५६०-६७, २२७-२४०७, २४३५-३८, २६२६-३६ ४६७५-८६ व्यतिक्रम ४२, ४३ व्यवहर्त्तव्य १७-३३, १६६२, १६६३ व्यवहार २-१२, १०६४-६८, १६५०-७४, २११७, २२०७-१५, ३८८१-४५५२ व्यवहारी १३-१६, ३२५-४४, ४०३, ४०४, १६६४-१७२७ व्युत्सर्ग ११०-२४ व्युत्सृष्टकाय ३८३८ ३८३६ शय्यातर ३३०६-४८ शाला ३७२४-३६ शिष्य (अयोग्य) २४६८४ शैक्षभूमि ४६०२-४४ श्रुतत्यवहार ४४३०-३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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