Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२४६]
परिशिष्ट-२०
गण
पोर (पौरगण) मल्ल (मल्लगण)
(गा. १३६६) (गा. १३६६)
णंतिक्क (रंगाई करनेवाला) णट्ट (नर्तक) दारपालय (द्वारपाल) देवड (शिल्पी) निजामग (नाविक) निल्लेवण (धोबी) पाडिहिग (पटहवादक) पुरुस (कुंभकार) महागोव (ग्वाला) रधिय (रथिक) रयग (धोबी) वच्छपाल (ग्वाला) सिरिघरय (भंडारी) सुत्तिय (सूत कातने वाला) सूवकार (रसोइया)
(गा. ४३१२) (गा. ४३१२) (गा. ३२६५) (गा. ४३१२) (गा. १३७३)
(गा. ५०४) (गा. ४३१२) (गा. ४३१२) (गा. १३७३) (गा. ४३६४) (गा. ४३१२) (गा. ३६३४) (गा. १३७३) (गा. ३७२५) (गा. ३७४०)
खाद्य पदार्थ
कंजिय (कांजी) खीर (खीर, दूध) गुल (गुड़) गोरस (दूध) घत (घी) घयमंड (घृतसार) तक्क (छाछ) तेल्ल (तैल) दधि (दही) दोड्डिय (तुम्बा) नवणीय (मक्खन) पय (दूध) परमन्न (खीर) महु (शहद) महुरग (खाद्य पदार्थ) रसाल (खाद्य पदार्थ) लोण (नमक) संखडि (मिठाई)
(गा. ४२४३)
(गा. ७७२) (गा. २८८४) (गा.१७६८) (गा. ४३८)
(गा. ८४७) (गा. २१३७)
(गा. ८४५) (गा. २४७६) (गा. ४२६२) (गा. २६६८) (गा. ४२८७) (गा. १६३८) (गा. ४४२१) (गा. ३८०३) (गा. ३३१२) (गा. ३७२०) (गा. २३८२)
अंगचूली (अंगचूलिका)
(गा. ४६५६) अरुणोववाय (अरुणोपपात)
(गा. ४६६०) आयार (आचारांग)
(गा. १५३३, ४६७४) आयार (निशीथ)
(गा. १५२५) आयारदशा (दशाश्रुतस्कंध)
(गा. ७६६) आयारपकप्प (निशीथ)
(गा. १५२८, २२६४) आवस्सय (आवश्यक)
(गा. २५७८) आवासय (आवश्यक)
(गा. ६५५) उट्ठाणसुय (उत्थानश्रुत)
(गा. ४६६३) उत्तरज्झयण (उत्तराध्ययन) (गा. १५३३, ३०३७) उत्तरज्झाय (उत्तराध्ययन)
(गा. १,५२६) कप्प (बृहत्कल्प)
(गा. १८४, १८५, ३२०,
४४३२-३५, ४६५५) कप्प (निश्ीथ)
(गा. १६५७, ३०५७) खड्डियाविमाणपविभत्ति (क्षल्लिकाविमानप्रविभक्ति)
(गा. ४६५६) गरुलोववाय (गरुडोपपात)
(गा. ४६६०) चुल्लसुत (चुल्लश्रुत)
(गा. ३०३७) जोणिपाहुड (योनिप्राभृत)
(गा २३६२) तरंगवई (तरंगवती)
(गा. २३२०) तित्थोगाली (तीर्थोगालि)
(गा. ४५३२) दसकालिय (दशकालिक)
(गा. ३०३७) दसवेयालिय (दशवैकालिक)
(गा. १५३३) दिट्ठिवाय (दृष्टिवाद)
(गा. २११८, ४६७४) देविंदथय (देवेन्द्रस्तव)
(गा. ३०१६) देविंदपरियावण (देवेन्द्रपरियापनिकी) (गा. ४६६३) नंदी (नंदी)
(गा. ३०३८, ३१३४) नागपरियाणी (नागपरियापनिकी) (गा. ४६६५) नागपरियावण (नागपरियापनिकी)
(गा ४६६३) निसीह (निशीथ) (गा ३५१ ५२८ -00 २८८
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