Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 840
________________ परिशिष्ट-२० वर्गीकृत विशेषनामानुक्रम वरधणुग (वरधनुक) (गा. ११७८) अवयव आभूषण मुत्तावलि (हार) मुद्दा (अंगूठी) मोरंगचूलिया (पशुओं का आभूषण) (गा. २६७) (गा. ६१३) (गा. १३६१) उत्सव अंगुलि (अंगुलि) अंडक (मुख) अच्छि (आंख) ओट्ट (होठ) कडि (कमर) कन्न (कान) कर (हाथ) कुच्छि (कुक्षि) गलय (गला) दंत (दांत) नयण (आंख) नेत्त (नेत्र) नास (नाक) नासिगा (नाक) पाद (पैर) बाहु (बाहु) मुह (मुख) (गा. ४२६०) (गा. ३६८३) (गा. ३६४२) (गा. ४३८३) (गा. २५७४) (गा. ३६४२) (गा. ३६४२) (गा. २३०१) (गा. ३८७४) (गा. ८६५) (गा. २६८३) (गा. ४४१२) (गा. ३६४२) (गा. ४३८३) (गा. २६८३) (गा. २५७४) (गा. २६८३) इंदक्कीलमह (इंद्रकीलमह) उज्जाणमह (उद्यानमह) गाममह (ग्राममह) जिणवरमह (जिनवरमह) तडागमह (तडागमह) थूभमह (स्तूपमह) महामह (महामह) वाणमंतरमह (व्यन्तरमह) सक्कमह (शक्रमह) सुगिम्हमह (सुग्रीष्ममह) (गा. १८०५) (गा. १८०४) (गा. १८०४) गा. २८३७) (गा. १८०४) (गा. ११६१) (गा. २१२६) (गा. १८०४) (गा. ८७३; २१३६) (गा. २१३६) उद्यान आचार्य उच्छुघर (इक्षुगृह) कोरंटग (कोरंटक) गुणसिल (गुणशिल) - (गा. ३६०५) (गा. ६७५ टी. प. १३७) (गा. ६७६) कर्मकर अअरक्खिय (आर्यरक्षित) अज्जसमुद्द (आर्यसमुद्र) खंदर (स्कन्दक) खुड्डगणि (क्षुल्लगणि) गोविंद (गोविंद) दुणसह (दुःप्रसभ) पुस्सभूति (पुष्यभूति) बाहु (भद्रबाहु) भद्दबाहु (मद्रबाहु) मंगु (मंगु) वइरभूति (वज्रभूति) (गा. २३६५, ३६०५) (गा. २६८५) (गा. ४४१७) (गा. १५०२) (गा. २७१३) (गा. ४१७४) (गा. ११७८) (गा २७०३) (गा. ४४३१) (गा. २६८५) (गा. १४१४) अयपालग (अजापालक) कुलाल (कुम्भकार) कुविंद (जुलाहा) गोवाल (ग्वाला) घडगार (कुंभकार) डोंब (चांडाल) (गा. १६११) (गा. ३६०३) (गा. १२८४) (गा. ३६३४) (गा. २५) (गा. ४३१२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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