Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
________________
२३८]
परिशिष्ट-१८
(३८३३ टी. प. २)
(४६६१ टी. प. ११३)
(४६६१ टी. प. ११३) (दश.४।१०)
एकैकां वर्धयेद् भिक्षां, शुक्ले कृष्णे च हापयेत् । भुजीत नामावास्यायामेष चान्द्रायणविधिः ।। विज्ञप्तिःफलदा पुंसां, न क्रिया फलदा मता। मिथ्याज्ञानात् प्रवृत्तस्य, फलसंवाददर्शनात् ॥ पढमं नाणं तओ दया,एवं चिट्ठइ सव्वसंजए। अन्नाणी किं काही, किं वा नाही छेय-पावगं॥ गीयत्थो अ विहारो, बिइतो गीयत्थमीसितो भणितो। एत्तो तइय विहारो, नाणुन्नातो जिणवरेहिं ॥ क्रियैव फलदा पुंसां, न ज्ञानं फलदं मतम् । यतःस्त्रीभक्ष्यभोगज्ञो, न-ज्ञानात्सुखितो भवे ॥ चेइय कुलगणसंधे आयरियाण च पवयणसुए य । सव्वेसु वि तेण कयं, तवसंजममुज्जमंतेण ॥ सुबहु पि सुयमहीयं, किं काही चरणविप्पहीणस्स | अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोडी वि॥
(४६६१ टी. प. ११३) (ओनि.१२२)
(४६६१ टी. प. ११३)
(४६६१ टी. प. ११३)
(४६६१ टी. प. ११३) (विभा. ११५२)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860