Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 718
________________ परिशिष्ट-७ [१२३ वेल्लूक-एक प्रकार का कीट। (गा. ३१६८) । साही-गली। (गा. ३१५०) वोगड-विभक्त। (गा. ३३५८) सिग्ग-परिश्रम । सिग्ग त्ति देशीपदमेतत परिश्रम इत्यर्थः। वोट्टित-उच्छिष्ट, अपवित्र। (गा. ३३१६) (गा. १७७० टी.प.६) वोद्द-मूर्ख। (गा. २४७०) सिंभियश्लैष्मिक। (गा. ३८३६ टी. प.३) • वोल-गमन करना। (गा. १२७७ टी.प.६८) सिव्वणि-सूई। (गा. ३५४६) संकटु-मार्ग। __(गा. ३५६४) सीभर/सीभरग-बोलते हुए थूक उछालने वाला। संकर-पथ, रास्ता। (गा. ४४२८) सीभरो नाम यः उल्लपन् परं लालया सिंचति । संखड-कलह। (गा. ५०१५ टी.प.११) (गा. १४८२ टी.प.२६) संखडि-१. सरस भोजन। (गा. २३१) सीयाण-श्मशान। (गा. ३१४६) २. मिठाई, जीमनवार । (गा. १६५०) सेटिणी-सेठाणी। (गा. १६०१ टी.प.५१) संखडी-जीमनवार। (गा. ११२) सेट्ठी-श्रेष्ठी। तुष्टनरपतिप्रदत्तश्रीदेवसंखेडिपाल–पशुपालक। (गा. १००० टी.प.८) ताध्यासितसौवर्णपट्टविभू- षितोत्तमांगो नगरचिंताकारी संगार-संकेत। (गा. ६४३) नागरिकजनः श्रेष्ठी। (गा. २१६ टी.प. १२) संगिल्ल-साथ में, समूह। (गा. ६३२) सेहि-गत, गया हुआ। (सू. ७/३) संगेल्ल-गायों का समूह । सोंड-सूंड। (गा. १३८३) संगिल्लो नाम गोसमुदायः। (गा. १००० टी.प.७) हक्कार-गर्जना। (गा. १३८६) • संचिक्ख-घात करना। (गा. ३२१०) हडि-कारावास। (गा. ४५४४) संडास-संडासी। (गा. ३३६८) (गा. ४५४४) संथड-राज्य। संथडं नाम राज्यम् । (३३५५) हत्यिहत्य-दुस्तर। (गा. ६६५) संघरमाण-तृप्त न होता हुआ। (गा. १७६५) हरियण्णी-वैसा प्रदेश, जहां प्रायः दुर्भिक्ष होता हो और वहां संपसार-मंत्रणा करना। (गा.१३८६ टी.प.८) | के लोग हरित, शाक आदि खाकर जीते हों। (गा. २०६१) संबर-कचरा उठाने वाला। संबराः कचवरोत्सारकाः। हाडहरु तत्काल। (गा. ३२६२ टी.प.९०) । हाडहडं देशीपदमेतत तत्कालमित्यर्थः। संभलि-दूती। (गा. २३७६) (गा. २७६ टी. प. ३०) समंति-भगिनी। (गा. १६०७) हाडहडा आरोपणा, प्रायश्चित्त का एक प्रकार । (गा. ५६६) सज्झंतिया-भगिनी। (गा. १६०३) हिंडिक-नगररक्षक। (गा. ६८३ टी.प.६७) सज्झिलग-१. भाई। (गा. ११४२) हित्य-हिंसित, मारा हआ। हत्थोत्ति देशीपदमेतद हिंसितः। २. पड़ोसी। (गा. १६८ टी.प.३६) (गा. १०० टी.प. ३६) सब्मिलग-साथी। (गा. १३२४) हिरडिक-चांडालों का यक्ष, जिसके मन्दिर (मूर्ति) के नीचे समुइ-स्वभाव। (गा. २६३७) मनुष्य की हड्डियां रखी जाती हैं। (गा. ३१४६ टी.प. ५५) सयज्झिय-सखा। (गा. ४४५ टी.प. ६२) हेटा-नीचे। (गा. ७५६) सातिजिय-अनुमोदित। (गा. १२८३) हेदिल्ल—नीचे वाला। गा. ५३२) सामत्थण-पर्यालोचन। (गा. ३८६४) हिंभूत-गुण-दोष के ज्ञान से विकल और निर्दम्भ । साला--शाखा। (गा. ३७५१) हेहंभूतो नाम गुणदोष-परिज्ञान-विकलोऽशठभावः । सासेरी-यंत्रमयी नर्तकी। (गा. १७५ टी.प.५६) सासेरीति देशीवचनमेतद् यंत्रमयी नर्तकी। | होदा-दे ही दिया, कर ही दिया। (गा. १११२ टी.प. ३४) 'होढ़ा' इति देशीपदमेतद् दत्तमेव कतमेवेत्यर्थः। साहण-कथन। (गा. ३८६१) । (गा. ६७७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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