Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 658
________________ परिशिष्ट-२ गाथा पृष्ठांक गायांक गाथा पृष्ठांक गायांक २२२ ४२६ ऊणट्ठए चरित्तं ऊणातिरित्तधरणे ४४३ ३३६ ५६६ ४६५ १४१ ३७५ ३५४ ५५६ २३० ५०६ ४१० २७५ एमेव य साधूणं एवं गंतूण तहिं एवं जुत्तपरिच्छा एवं ता जीवंते एवं तु विदेसत्थे एवं तू परिहारी एवं पि भवे दोसा एवं भणिते भणती एव तुलेऊणपं एस तवं पडिवजति एस सत्तण्ह मज्जाया ६२ २५८ १२३ ३६४ २०३ ३६४ ५३३ ४१३ ३११ २७७ १०६ ४६ ३१० ४३० २५ ११६ ५८ ओलोयणं गवेसण ओह अभिग्गह दाणग्गहणे ओहेणेगदिवसिया . २२४ २०१ ३५५ ५२ १३० ३३४ २८५ १५३ एक्कक्कं पि य तिविहं ६७ १६७ एक्कक्के आणादी ३३६ एक्को व दो व उवधिं ४३२ एगतरलिंगविजढे १५५ एगुत्तरिया घडछक्कएण ६७ एगे अपरिणए वा ५७ एगे उ पुव्वभणिते ३४४ ४७२ एगो एगो चेव तु ३०८ ४२५ एतद्दोसविमुक्कं २५ एतस्सेग दुगादी २१२ एते अण्णे य बहू ४५६ एते उ सपक्खम्मी ४१६ एते गुणा भवंती १५२ २६० एते दोसविमुक्का १४२ २३२ एते य उदाहरणा १३६ २२४ एतेसामण्णतरे ३०५, ३०६ ४२०, ४२१ एतेसिं ठाणाणं ३८४ ५३० एतेसु तिठाणेसुं एतेसु धीरपुरिसा ४३० ५५६ एतेहि कारणेहिं १६६, ३६८, ४१७ २७६, ५००, ५४६ एत्तो तिविधकुसीलं एमादी सीदंते १८८ ३१४ एमेव आणुपुब्बी ४१७ ५४४ एमेव बहूणं पी २११ ३४४ एमेव बितियसुत्ते १०४ १८० एमेव मंडलीय वि १७७ २६५ एमेव महल्ली वी ३५६ ४८४ एमेव य पारोक्खी ३६६ ५३६ एमेव य वासासुं १६१ Vom ५.०० ७१ १८८ ३१५ १३ १७ ३८७ ७५ कंदप्पा परलिंगे कडजोगिणा तु गहियं कतकरणा इतरे वा कप्पपकप्पी तु सुते कप्पसमत्ते विहरति करणिज्जेसु उ जोगेसु काउस्सग्गे वखेवया कामं विसमा वत्थू काय-वइ-मणोजोगो कारणमेगमडंबे काले जा पंचाहं काले दिया व रातो किं नियमेति निजर किं होज परिदृवितं केई पुव्वं पच्छा केरिसओ ववहारी केवतिकालं उग्गह केवल-मणपज्जवनाणिणो २५१ ३२ ४४३ २७७ ५७० ४१२ ८६ १४८ १२८ ४५१ ४८१ ३५८ १३५ ३३४ ३६८ २२० ४५७ ५०१ २७३ ३४६ ८४, ५६३ १६५ २१५ ३६, ४३२ ३२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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