Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 669
________________ [७४ परिशिष्ट-४ प्र.गाथा सं.गाथा प्र.गाथा सं.गाथा प्र.गाथा सं.गाथा .प्र.गाथा सं.गाथा १४२ १४१ १७७. १७६ ६० २४३ * १४२ २५ २६ १७८ २४४ २४५ १७६ २७ १४३ १४५ १४३ १४४ १४५ १८० २८ २४६ १७७ १७८ १७६ १८० १८१ १८२ १८३ १८१ १८२ २६ १४६ १८३ १८४ १४७ १४८ १४६ १५० १५१ १५२ १५३ १५४ १४७ १४८ १४६ १५० १५१ १५२ २०८ २०६ २१० २११ २१२ २१३ २१४ २१५ २१६ २१७ २१८ २१६ २२० २२१ २२२ २२३ २२४ २२५ २२६ २२७ २२८ २४७ २४८ २४६ २५० २५१ २५२ २५३ २५४ २५५ प्रथम उद्देशक १८४ । १८५ १५५ २५६ १५६ १५७ ७५ १५८ १५४ १५५ १५६ १५७ १५८ १५६ १६० n n Gram १५६ १८७ १८८ १८६ १६० १६१ १६२ १६३ १६४ १६५ १६६ १६७ १६८ १६६ २५७ २५८ २५६ २६० २६१ २६२ २६३ २६४ २६५ २६६ २६७ २६८ १६१ २२६ १६३ १६४ १६५ ११ १२ २३० २३१ १४ १५ १६७ १६२ १६३ १६४ १६५ १६६ १६७ १६८ १६६ १७० १७१ २३२ २३३ २३४ २६६ २०० २३५ १६६ १७० १८ २०१ २०२ २०३ २०४ २७० २७१ २७२ २७३ २७४ १७२ १७३ १७४ २० २१ २३६ २३७ २३८ २३६ २४० २४१ २४२ १७२ २२ २७५ १७३ १७४ १७५ २०५ २०६ ५८ २७६ २७७ १७६ २४ २०७ ★ मुद्रण के प्रमाद से यह गाथा मूल भाष्य के क्रमांक में न होकर व्याख्या के मध्य में प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860