Book Title: Agam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 542
________________ in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र एकोनत्रिंश अध्ययन [394] (उत्तर) ज्ञान-संपन्नता से जीव सब भावों को जानता है। ज्ञान-सम्पन्न जीव चतुर्गति रूप संसार-वन में विनष्ट नहीं होता-रुलता नहीं। ___ जिस प्रकार धागा सहित सुई गिर जाने पर भी विनष्ट-गुम नहीं होती, उसी प्रकार श्रुत ज्ञान-संपन्न जीव भी संसार में विनष्ट नहीं होता-भ्रमण नहीं करता। __ज्ञान-विनय-तप-चारित्र के योगों को प्राप्त करके जीव स्वसमय-परसमय (स्वमत-परमत) की विवेचना में प्रामाणिक (संघातनीय) माना जाता है। Maxim 60 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by possessing right-knowledge (jnana-sampannata)? (A). By possessing right-knowledge a being knows all concepts (bhaava). A being endowed with right-knowledge does not get lost and wasted in the wilderness of cycles of rebirths in four realms (samsaar). As a needle with thread (sutra) does not get lost when dropped, in the same way a being endowed with scriptural knowledge (sutra) does not get lost in the cycles of rebirth. Gaining association with knowledge, modesty, austerity and conduct a being is considered authentic in analysis of his own doctrine and those of others. ___ सूत्र ६१-दसणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? दसणसंपन्नयाए णं भवमिच्छत्त-छयणं करेइ, परं न विज्झायइ। अणुत्तरेण नाणदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे, सम्म भावेमाणे विहरइ॥ सूत्र ६१-(प्रश्न) भगवन् ! दर्शन-संपन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर) दर्शन (सम्यग्दर्शन) सम्पन्नता से जीव संसार के कारण मिथ्यात्व का छेदन करता है। उसके बाद (सम्यक्त्व का प्रकाश) बुझता नहीं। फिर वह अनुत्तर (श्रेष्ठ) ज्ञान-दर्शन से आत्मा को. संयोजित करता हुआ और सम्यक् रूप से भावित करता हुआ विचरण करता है। ___Maxim 61 (Q). Bhante! What does ajiva (soul/living being) obtain by possessing right perception/faith (darshan-sampannata)? (A). By possessing right perception/faith a being pierces unrighteousness. After that light of righteousness is never extinguished. Then he moves about rightly infusing and enkindling the soul with exalted knowledge and perception/faith. सूत्र ६२-चरित्तसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसीभावं जणयइ। सेलेसिं पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ। तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाएइ, सव्वदुक्खाणमंतं करेइ॥ सूत्र ६२-(प्रश्न) भगवन् ! चारित्र-सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर) चारित्र-संपन्नता से जीव शैलेशी भाव (मेरु के समान सर्वथा निष्कम्प दशा) को प्राप्त करता है। शैलेषी दशा को प्राप्त अनगार केवली में रहने वाले चार अघाती कर्मांशों का क्षय कर देता है। तदनन्तर वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और सर्वदु:खों का अन्त कर देता है।

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