Book Title: Agam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 682
________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र षट्त्रिंश अध्ययन [ 526] एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रस- फासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ९१ ॥ वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान के आदेश - अपेक्षा से भी अप्कायिक जीवों के हजारों प्रकार कहे गये हैं॥ ९१ ॥ These water-bodied beings are also of thousands of kinds with regard to colour, smell, taste, touch and constitution. (91) वनस्पतिकाय की प्ररूपणा दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ ९२ ॥ दो प्रकार के वनस्पतिकायिक जीव हैं - ( १ ) सूक्ष्म, और (२) बादर । पुनः इन दोनों के दो-दो भेद और हैं- (१) पर्याप्त, और (२) अपर्याप्त ॥ ९२ ॥ Plant-bodied beings Plant-bodied beings are of two types - ( 1 ) minute, and (2) gross. These two are also of two types each - ( 1 ) fully developed (paryaapt), and (2) under-developed (aparyaapt). (92) बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया । साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ॥ ९३॥ पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं- (१) साधारण शरीरी ( अनन्त जीवों का निवास स्थान- पिंड), और (२) प्रत्येक शरीरी (एक जीव का निवास) ॥ ९३ ॥ Fully developed plant-bodied beings are said to be of two kinds-(1) common-bodied (aggregate of infinite souls sheltered in one plant-body; sadharan shariri), and (2) individual-bodied (each soul having its own body; pratyeka shariri ). ( 93 ) गहा ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा जहा - ॥ ९४ ॥ पत्तेगसरीरा उ, प्रत्येक शरीरी वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा- रुक्ख-वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बल्लरी- बेल (ककड़ी आदि की बेल) तथा तृण आदि - ॥ ९४ ॥ Individual-bodied plant-bodied beings are said to be of several types-trees, shrubby plants, shrubs, creepers, tendrils, grass etc. - (94) यावलया पव्वगा कुहुणा, जलरुहा ओसही - तिणा । हरियकाया य बोद्धव्वा, पत्तेया इति आहिया ॥ ९५ ॥ लतावलय, पर्वज - ईख आदि, कुहन-भूमिफोड़, जलरुहा - जल में उत्पन्न होने वाले, औषधि (गेहूँ, चना आदि धान्य), तृणा - शालि आदि धान्य, हरितकाय आदि ये सभी प्रत्येक शरीरी (वनस्पतिकायिक) हैं ॥ ९५ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726