Book Title: Agam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 636
________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र उत्तम मदिरा का जैसा रस होता है तथा विविध प्रकार के आस्रवों का रस और मधु (विशेष प्रकार की मदिरा) सिरके, मैरेयक का रस (कुछ खट्टा कुछ कसैला) होता है उससे भी अनन्तगुणा ज्यादा कुछ खट्टा-कुछ कसैला रस पद्मलेश्या का होता है ॥ १४ ॥ The taste of lotus-yellow (Padma) soul-complexion is infinitely more sour and astringent than that of wine, various types of liquors including Madhu and Maireyaka. (14) चतुस्त्रिंश अध्ययन [ 484 ] खजूर - मुद्दियरसो, खीररसो खण्ड- सक्कररसो वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ सुक्काए नायव्वो ॥ १५ ॥ खजूर और द्राक्षा, दूध, खांड-शक्कर का जैसा रस (स्वाद) होता है उससे भी अनन्तगुणा अधिक मीठा रस शुक्ललेश्या का होता है ॥ १५ ॥ The taste of white (Shukla) soul-complexion is infinitely sweeter than that of dates, grapes, milk and candied and pounded sugar. (15) (४) गन्धद्वार जह गोमडस्स गन्धो, सुणगमडगस्स व जहा अहिमडस्स । तो वि अणन्तगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥ १६ ॥ मृत गाय की मरे हुए कुत्ते की, मरे हुए सर्प की जैसी गंध (दुर्गन्ध) होती है उससे भी अनन्तगुणी अधिक दुर्गन्ध तीन अप्रशस्त (कृष्ण, नील, कापोत) लेश्याओं की होती है ॥ १६ ॥ (4) Gandha dvara ( smell ) — The smell of three ignoble soul-complexions (black, blue and pigeon-blue) is infinitely more obnoxious than the stink of corpses of cow, dog and serpent. (16) जह सुरहिकुसुमगन्धो, गन्धवासाण पिस्समाणाणं । तो व अन्तगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि ॥ १७ ॥ सुरभित कुसुमों की गंध, पीसे जाते हुए सुगन्धित गन्ध द्रव्यों की जैसी गन्ध (सुगन्ध) होती है उससे भी अनन्तगुणी अधिक सुगन्ध तीन प्रशस्त (तेजस्, पद्म और शुक्ल) लेश्याओं की होती है ॥ १७॥ The smell of three noble soul-complexions (red, yellow and white) is infinitely more pleasant than that of fragrant flowers and herbs when they are crushed and grinded. (17) (५) स्पर्शद्वार - जह करगयस्स फासो, गोजिब्भाए व सागपत्ताणं । एत्तो वि अणन्तगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥ १८ ॥ करवत (करौत) का, गाय की जीभ का, शाक नामक वनस्पति के पत्तों का जैसा कर्कश स्पर्श होता है उससे भी अनन्तगुणा अधिक कर्कश स्पर्श तीनों अप्रशस्त (कृष्ण, नील, कापोत) लेश्याओं का होता है॥ १८॥

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