Book Title: Agam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 675
________________ [519] षट्त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र बारसहिं जोयणेहिं, सव्वस्सुवरिं भवे । ईसीपब्भारनामा उ, पुढवी छत्तसंठिया ॥ ५७ ॥ सर्वार्थसिद्ध विमान से बारह योजन ऊपर ईषत्प्राग्भारा नाम की छत्राकार पृथ्वी है ॥ ५७ ॥ There is an umbrella (chhatra) shaped land named Ishatpragbhara Prithvi (the land or world just before the edge) twelve Yojans above Sarvarthasiddha Vimaan (celestial vehicle). (57) आयया । पणयालसयसहस्सा, जोयणाणं तु तावइयं चेव वित्थिण्णा, तिगुणो तस्सेव परिरओ ॥ ५८ ॥ वह पृथ्वी पैंतालीस लाख योजन लम्बी और उतनी ही विस्तीर्ण (चौड़ी ) है तथा उसकी परिधि (कुछ अधिक) तीन गुनी है ॥ ५८ ॥ That world is four and a half million Yojans in length and same in breadth and its circumference is slightly more than three times that. (58) अट्ठजोयणबाहल्ला, सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायन्ती चरिमन्ते, मच्छियपत्ता तणुयरी ॥ ५९ ॥ वह मध्य में आठ योजन बाहल्य वाली (स्थूल - मोटी) कही गई है। फिर वह क्रमश: पतली होती गई है और चरम - अन्त में मक्खी की पाँख से भी अधिक पतली है ॥ ५९ ॥ It is eight Yojan deep at the center tapering down to the thickness of the wings of a house-fly at its periphery. ( 59 ) अज्जुणसुवण्णगमई, सा पुढवी निम्मला सहावेणं । उत्ताणगच्छत्तगसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं ॥ ६० ॥ जिनेन्द्रों ने बताया है कि वह पृथ्वी अर्जुन स्वर्णमयी (श्वेत सुवर्ण वाली) और स्वभाव से ही निर्मल ( उज्ज्वल ) है और उसका आकार तने हुए उलटे छाते जैसा है ॥ ६०॥ Jinas have told that this world is made up of white gold, pure by nature and its shape is like an upturned open umbrella. (60) संखंक- कुन्दसंकासा, पण्डुरा निम्मला सुहा । सीया जोयणे तत्तो, लोयन्तो उ वियाहिओ ॥ ६१ ॥ वह पृथ्वी शंख, अंकरत्न और कुन्द पुष्प के समान श्वेत, निर्मल तथा शुभ है। उस सीता ( ईषत्प्राग्भारा नाम की पृथ्वी) से एक योजन ऊपर लोक का अन्त कहा गया है ॥ ६१ ॥ That world is white, pure and pious like conch-shell, Ankaratna (a gem) and Kunda flower. One Yojan above that world named Sita (Ishatpragbhara) is the end of the universe (Lok). (61) जोयणस्स उ जो तस्स, कोसो उवरिमो भवे । तस्स कोसस्स छब्भाए, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ६२ ॥ उस योजन का जो सबसे ऊपर का कोस है, उस कोस के छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना है - वहाँ सिद्ध जीव ठहरे हुए हैं ॥ ६२ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726