Book Title: Agam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 589
________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र जिस प्रकार बिडाल (बिल्लियों) के निवास स्थान के समीप ( मूले) मूषकों (चूहों ) का निवास प्रशस्त (अच्छा ) नहीं होता उसी प्रकार स्त्रियों के निवास स्थान के अति निकट अथवा मध्य में (इत्थीनिलयस्स मज्झे) ब्रह्मचारी का निवास ( रहना) क्षम्य (उचित) नहीं है ॥ १३ ॥ As it is not safe for mice to live near the dwelling of cats, in the same way it is not proper for a celibate to live very near or in the middle of houses inhabited by women. (13) न रूव - लावण्ण - विलास -हासं, न जंपियं इंगिय-पेहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता, दठ्ठे ववस्से समणे तवस्सी ॥ १४ ॥ स्त्रियों के रूप, लावण्य, विलास, हास, प्रिय भाषण, इंगित चेष्टा ( अंग-भंगिमा) आदि को (अपने) हृदय में स्थान देकर तपस्वी श्रमण उनको देखने का प्रयास न करे ॥ १४ ॥ [441] द्वात्रिंश अध्ययन An austerity observing ascetic should have no place in his mind for beauty, charm, laughter, sweet talks, gestures and the like of women; he should also not make any effort to look at them. (14) अदंसणं चेव अपत्थणं च, अचिन्तणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियझाणजोग्गं, हियं सया बम्भवए रयाणं ॥ १५ ॥ ब्रह्मव्रत (ब्रह्मचर्य) में सदा रत ( लीन) रहने वाले पुरुष (साधक) के लिए स्त्रियों को न देखना, उनकी प्रार्थना (अभिलाषा) न करना, उनका चिन्तन (विचार) भी न करना और उनका कीर्तन (कथन-वर्णन) भी न करना हितकारी है तथा आर्य (सम्यक्) ध्यान (साधना) के लिए योग्य (उचित) है ॥ १५ ॥ Not to look at women, not to long for them, not even to think of them or praise them is beneficial for the aspirant always engrossed in the vow of celibacy and it is also proper for practicing noble meditation. ( 15 ) कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । हा वि एगन्तहियं ति नच्चा, विवित्तवासो मुणिणं पसत्थो ॥ १६ ॥ यद्यपि (मानं तु - माना कि ) तीन गुप्तियों (मन-वचन-काय ) से गुप्त मुनि को (वस्त्रालंकारों से) विभूषित देवियाँ भी सुभित - ( उनकी साधना से विचलित) नहीं कर सकतीं तथापि ( तब भी ) एकान्त हित को जानकर मुनि के लिए विविक्त (स्त्री- पशु - नपुंसक से रहित ) वास ही प्रशस्त है ॥ १६ ॥ Though even well adorned (with lustrous costumes and ornaments) the goddesses cannot disturb the ascetic disciplined by three restraints (of mind, speech and body), but considering the ultimate benefit only a solitary lodge (devoid of women, animals and neuters) is best for an ascetic. (16) मोक्खाभिकंखिस्स वि माणवस्स, संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहित्थिओ बालमणोहराओ ॥ १७ ॥ मोक्ष की आकांक्षा वाले, संसार से भयभीत और धर्म में स्थित मनुष्य के लिए संसार में इतना दुस्तर कार्य और कोई नहीं है जितनी कि अज्ञानियों (बाल) के मन (हृदय) के हरण करने वाली स्त्रियाँ (दुस्तर) हैं॥ १७॥

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