________________ छठे अध्ययन की अन्तिम गाथा है-अनुत्तरज्ञानी, अनुत्तरदर्शी, अनुत्तर ज्ञान-दर्शन के धारक, अरिहन्त, ज्ञातपुत्र, भगवान्, वैशालिक महावीर ने ऐसा कहा है। 38 वैशालिक का अर्थ भगवान् महावीर है। प्रत्येकबुद्धभाषित अध्ययन भी प्रत्येकबुद्ध द्वारा ही रचे गये हों, यह बात नहीं है। क्योंकि पाठवें अध्ययन की अन्तिम गाथा में यह बताया है कि विशुद्ध प्रज्ञावाले कपिल मुनि ने इस प्रकार धर्म कहा है। जो इसकी सम्यक अाराधना करेंगे, वे संसार-समुद्र को पार करेंगे। उनके द्वारा ही दोनों लोक पाराधित होंगे। 38 यदि प्रस्तुत अध्ययन कपिल के द्वारा विरचित होता तो वे इस प्रकार कैसे कहते ? संवाद-समुत्थित-प्रध्ययन नौवें और तेईसवें अध्ययनों का अवलोकन करने पर यह परिज्ञात होता है कि वे अध्ययन नमि राजर्षि और केशी-गौतम द्वारा विरचित नहीं हैं। नौवें अध्ययन की अन्तिम माथा है-- संबद्ध. पण्डित, प्रविचक्षण पुरुष कामभोगों से उसी प्रकार निवत्त होते हैं जैसे–नमि राजर्षि ! 40 तेईसवें अध्ययन को अन्तिम गाथा है- समग्र सभा धर्मचर्चा से परम संतुष्ट हुई, अतः सन्मार्ग में समुपस्थित उसने भगवान केशो और गणधर गौतम की स्तुति की कि वे दोनों प्रसन्न रहें।" उपर्युक्त चर्चा का सारांश यह है कि नियुक्तिकार भद्रबाहु ने उत्तराध्ययन को कर्तृत्व की दृष्टि से चार वर्गों में विभक्त किया है। उसका तात्पर्य इतना ही है कि भगवान् महाबीर, कपिल, नमि और केशी-गौतम के उपदेश तथा संवादों को आधार बनाकर इन अध्ययनों की रचना हुई है। इन अध्ययनों के रचयिता कौन हैं ? और उन्होंने इन अध्ययनों की रचना कब की? इन प्रश्नों का उत्तर न नियुक्तिकार भद्रबाह ने दिया, न चूर्णिकार जिनदासगणी महत्तर ने दिया है और न बृहद्वृत्तिकार शान्त्याचार्य ने ही दिया है। प्राधुनिक अनुसंधानकर्ता विज्ञों का यह मानना है कि वर्तमान में जो उत्तराध्ययन उपलब्ध है, वह किसी एक व्यक्तिविशेष की रचना नहीं है, किन्तु अनेक स्थविर मुनियों की रचनाओं का संकलन है। उत्तराध्ययन के कितने ही अध्ययन भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित हैं तो कितने ही अध्ययन स्थविरों के द्वारा संकलित हैं। 2 इसका यह तात्पर्य नहीं है कि उत्तराध्ययन में भगवान महावीर का धर्मोपदेश नहीं है। उसमें वीतरागवाणी का अपूर्व तेज कभी छिप नहीं सकता / क्र र काल की काली प्रांधी भी उसे धुंधला नहीं कर सकती। वह आज भी प्रदीप्त है और साधकों के अन्तर्जीवन को उजागर करता है। आज भी हजारों भव्यात्मा उस पावन उपदेश को धारण कर अपने जीवन को पावन बना रहे हैं। यह पूर्ण रूप से निश्चित है कि देवद्धिगणी क्षमाश्रमण तक उत्तराध्ययन छत्तीस अध्ययनों के रूप में संकलित हो चुका था। समवायांगसूत्र में छत्तीस उत्तर अध्ययनों के नाम उल्लिखित हैं। 38. एवं से उदाह अगत्तरनाणी, अगत्तरदंसी अणत्तरनाणदंसणधरे, अरहा नायपुत्ते, भगवं वेसालिए वियाहिए।' -उत्तराध्ययन 618 39. 'इइ एस धम्मे अक्खाए, कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं / तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति तेहिं पाराहिया दुवे लोगा।' -उत्तराध्ययन 8/20 40. 'एवं करेन्ति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा / विणियन्ति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसी // ' -- उत्तराध्ययन 9 / 62 41. 'तोसिया परिमा सव्वा, सम्मग्गं समृवट्ठिया / संथ या ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे / ' उत्तराध्ययन 2381 42. (क) देखिए-दसवेनालिय तह उत्तरज्झयणं की भूमिका, प्राचार्य तुलसी (ख) उत्तराध्ययनसूत्र की भूमिका, कवि अमरमुनि जी [26 | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org