Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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२ दो दो एगट्टीभागमुहुत्ते एगमेगे मंडले दिवसखेत्तस्स णिवुड्ढेमाणे २ रतणिक्खेत्तस्स अभिवुड्ढेमाणे २ सव्वबाहिरमंडल|| उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरातो मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उक्संकमित्ता चारं चरति तता णं सव्वब्भंतरमंडलं पणिधाय एगेणं सीतेणं राइंदियसतेणं तिण्णि छावढे एगद्विभागमुहत्तसते दिवसखेत्तस्स णिवुड्ढित्ता रतणिक्खेत्तस्स अभिवुड्ढित्ता चारं चरति तदा णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठरसमुहत्ता राती भवति जहण्णए बारसमुहुत्ते दिवसे भवति, एस णं पढमे छम्मासे एस णं पढमछम्मासस्स पज्जवसाणे, से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं (आ)यमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि
मेत्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तदा णं अद्वारसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति दोहिं एगद्विभागमुहुत्तेहिं अहिए, से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उत्संकभित्ता चारं चरति तदा णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति चाहिं एगट्ठिभागमुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति चाहिं एगद्विभागमुहुत्तेहिं अहिए, एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तदाणंतरातो मंडलातो तयाणंतरं मंडलं संक्रममाणे २ दो दो एगट्ठिभागमुहुत्ते एगमेगे मंडले रतणिखेत्तस्स णिवुड्ढेमाणे दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे २ सव्वब्अंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओसव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तदाणं सव्वबाहिरं मंडलं पणिधाय एगेणं तेसीएणं राइंदियसतेणं I श्री सूर्यप्रजप्त्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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