Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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ता कति णं भंते संवच्छ। आहि०?, ता पंच संवच्छ। आहि०, तं०-णखत्तसंवच्छरे जुग० पमाण० लक्खण० |सणिच्छरसंवच्छरे ५४ता णक्खत्तसंवच्छरे णं दुवालसविहे पं० तं०-सावणे महवए जाव आसाढे, जं वा बहस्सती महग्गहे दुवालसहिं संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेति ५५ ता जुगसंवच्छरे णं पंचविहे पं० २०-चंदे चंदे अभिवढिए चंदे अभिवढिए चेव, ता पढमस्स णं चंदसंवच्छरस्स चवीसं पव्वा पं० दोच्चस्स णं चंदसंवच्छरस्स चवीसं पव्वा पं० तच्चस्स णं अभिवड्ढितसंवच्छरस्स छव्वीसं पव्वा पं० चउत्थस्स णं चंदसंवच्छरस्स चवीसं पव्वा पं० पंचमस्स णं अभिवड्ढियसंवच्छरस्स छव्वीसं पव्वा पं०, एवामेव सपुव्वावरेणं पंचसंवच्छरिए जुगे एगे चवीसे पव्वसते भवतीतिमक्खातं १६ ता पमाणसंवच्छरे पंचविहे पं० २०-नक्खत्ते चंदे उडू आइच्चे अभिवड्ढिए ५७ ता लक्खणसंवच्छरे पंचविहे पं० २०-नक्खत्ते चंदे उडू आइच्चे अभिवड्ढिए, ता णक्खत्ते णं संवच्छरे णं पंचविहे पं०-समगं णक्खत्ता जोयं जोएंति समगं उदू परिणमंति। नच्चुण्हं नाइसीए बहुउदए होइ नखत्ते ॥२५॥ ससिसमगपुनिमासिं जोइंता विसमचारिनक्खत्ता। कडुओ बहुउद्दवओ य तमाह संवच्छरं चंदं ॥२६॥ विसमं पवालिणो परिणमंति अणुऊसु दिति पुष्फली वासं न सम्म वासइ तमाह संवच्छरं कम्मं ॥२७॥ पुढवीदगाणं च रस पुष्फफलाणं च देइ आइच्चे अप्पेणवि वासेणं संमं निष्फज्जए सस्सं ॥२८॥ आइच्चतेयतविया खणलवदिवसा उॐ परिणमन्ति। पूरेति निण्णथलये तमाह अभिवड्ढितं जाण॥२९॥ ता सणिच्छरसंवच्छरे णं अट्ठावीसतिविहे पं० २०-अभियी सवणे जाव ॥ श्री सूर्यप्रजप्त्युपाङ्गम् ॥
पू.सागरजी म. संशोधित
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