Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahar Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir
| केवइ परिक्खेवेणं ?, ता सोलस जोयणसयसहस्साई चकवालविक्खंभेणं एगा जोयणकोडी बाणउतिं च सतसहस्साई
अउणाणवई च सहस्साई अट्ठचउणउते जोअणसते परिक्खेवेणं आहि०, ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छ। तधेव, ता चोतालं चंदसदं पभासेंसु वा० चोत्तालं सूरियाणं सतं तवइंसु वा० चत्तारि सहस्साई बत्तीसं च नक्खत्ता जोअंजोएंसु वा० बारस सहस्साई छच्च बावत्तार महम्गहसता चारं चरिंसु वा, छण्णउतिसयसहस्साई चोयालीसं सहस्साई चत्तारि य स्थाई तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभेसु वा० कोडी बाणउती खलु अणाणउतिं सवे सहस्साई। अदुसता चउणउता य परिरओ पोक्खरवस्स ॥४५॥ चोत्तालं चंदसतं चोत्तालं चेव सूरियाण संतो पोक्खरवरम्मि दीवे चरंति एते पभासंता ॥ ४६॥ चत्तारि सहस्साई बत्तीसं चेव हुंति णक्खत्ता। छच्च सता बावत्तर महग्गहा बारहसहस्सा ॥ ४७॥ छण्णउति सयसहस्सा चोत्तालीसं खलु भवे सहस्साई। चत्तारि तह सयाई तारागणकोडिकोडीणं ॥ ४८॥ ता पुक्खरवरस्स णं दीवस्स बहुमझदेसभाए माणुसुत्तरे णाम पव्वए पं० वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिते जेणं पुक्खरवरं दीवं दुधा विभयमाणे २ चिट्ठति, तं०-अभितरपुक्खरद्धं च बाहिरपुक्खरद्धं च, ता अभितरपुक्खरद्धे णं किं समचकवालसंठिए विसमचक्कवालसंठिए?, ता समचक्कवालसंठिए णो विसमचकवालसंठिते, ताअभितरपुक्खरद्धेणं केवतियं चकवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहि०? ता अजोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं
एक्का जोयणकोडी बायालीसं च सहसहस्साई तीसं च सहस्साई दो अउणापण्णे जोयणसते परिक्खेवेणं आहि०, ता In श्री सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
| १०५
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133