Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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मूलेणं मूलापत्रेणं० पुव्वाहिं आसाढाहिं आमलग (प्र० मालवे )सरीरे० उत्तराहिं आसाढाहिं विलेविं● अभीयिणा पुष्फेहिं० सवणेणं खीरेण धणिट्ठाहिं जूसेण० सयभिसाए तुवरीओ० पुव्वाहिं पुट्ठवयाहिं कारिल्लएहिं० उत्तराहिं पुट्ठवताहिं वराहमंसं० रेवतीहिं जलयरमंसं० अस्सिणीहिं तित्तिरमंसं वट्टकमंसं वा० भरणीहिं तिलतंदुलकं भोच्चा कजं साधेति ५१।१०-१७॥
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ता कहं ते चारा आहि० ?, तत्थ खलु इमा दुविहा चारा पं० तं० - आदिच्चचारा य चन्दचारा य, ता कहं ते चंदचारा आहि० ?, ता पंचसंवच्छरिए णं जुगे अभीइणक्खत्ते सत्तसविचारे चंदेण सद्धिं जोयं जोएति, सवणे णं णक्खत्ते सत्तविचारे चंदेण सद्धिं जोयं जोएति एवं जाव उत्तरासाढाणक्खत्ते सत्तट्ठिचारे चंदेणं सद्धिं जोयं जोएति, ता कहं ते आईच्चचारा आहितेति वदेज्जा ?, ता पंचसंवच्छरिए णं जुगे अभीयीणक्खत्ते पंचचा (वारे सूरेण सद्धिं जोयं जोएति, एवं जाव उत्तरासाढाणक्खत्ते पंचचा (वा )रे सूरेण सद्धिं जोयं जोएति ॥५२॥१०- १८ ॥
ता कहं ते मासा आहि ०?, ता एगमेगस्स णं संवच्छरस्स बारस मासा पं०, तेसिं च दुविहा नामज्जा पं० तं०- लोइया लोउत्तरिया थ, तत्थ लोइया णामा-सावणे भद्दवते आसोए जाव आसाढे, लोउत्तरिया णामा-अभिणंदे सुपट्टे य, विजये पीतिवद्धणे । सेज्जंसे सिवे यावि, सिसिरे य सहेमवं ॥ २३ ॥ नवमे वसंतमासे, दसमे कुसुमसंभवे । एकादसमे णिदाहो, वणविरोही य बारसे ॥२४॥५३॥१०-१९॥ ॥ श्री सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित

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