Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahave Jain Aradhana Kendra
www.kabalih.org
Acharya Shet Kailashsagaset Gyarmandir
- ता कहं ते सिग्धगती वत्थू आहि०?, ता एतेसिं णं चंदिमसूरियगहगणनखत्ततारारूवाणं चंदेहितो सूरा सिग्धगती सूरेहितो | गहा सिग्धगती गहेहिंतो णखत्ता सिग्धगती णखत्तेहिंतो तारा सिग्धगती, सव्वप्पगती चंदा सव्वसिग्मती नारा, ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं चंदे केवतियाई भागसताई गच्छति?, ता जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स २ मंडलपरिक्खेवरस सत्तरस अडसद्धिं भागसते गच्छति मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीसतेहिं छेत्ता, ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं सूरिए केवतियाई भागसयाई पच्छति?, ता जं जं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति तस्स २ मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस तीसे भागसते गच्छति मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीसतेहिं छेत्ता ता एगभेगेणं मुहुत्तेणं णक्खत्ते केवतियाई भागसताइं गच्छति?, ता जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स २ मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसते गच्छति मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीसतेहिं छेत्ता। ८३। ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं सूरे गतिसमावण्णे भवति से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति?, बावविभागे विसेसेति, ता जया णं चंद गतिसमावण्णं णक्खत्ते गतिसमावण्णे भवइ से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेइ?, ता सत्तट्ठिभागे विसेसेति, ता जता णं सूरं गतिसमावण्णं णक्खत्ते गतिसमावण्णे भवति से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति?, ता पंच भागे विसेसेति, ता जता णं चंदं गतिसमावण्णं अभीयाणक्खत्ते णं गतिसमावण्णे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति, पुरच्छिमाते भागाते समासादित्ता णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तविभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोयं जोएति त्ता जोयं अणुपरियति त्ता विष्पजहाति त्ता विगतजोई यावि भवति, ॥ श्री सूर्यप्रज्ञप्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133