Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailashsagarsuri Gyanmandir दिवसखेत्तस्स णिवुड्ढेमाणे २ स्यणिखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे २ सव्वबाहिरं मंडलं उसंकभित्ता चारं चति, ता ज्या णं सूरिए। सव्वब्भंतरातो मंडलातो सव्वबाहिरं मंडलं उसंकभित्ता चार चरति तताणं सव्वब्भंतरं मंडलं पणिधायएगलेसीलेणं गइंडियसतेणं सगं तेसी भागसतं ओयाए दिवसखेत्तस्स णिबुड्ढेता रयणिखेत्तस्स अभिवुड्ढेत्ता चार चरति मंडलं अद्वारसहिं तीसेहिं सयेहिं छेत्ता, तता णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्को० अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति जह० दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति, एसणं पढमे छम्मासे एसणं पढमस्स छम्मासस्स प्रज्जवसाणे, से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उक्संकमित्ता चारं चरति ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति तता णंएगेणं राइदिएणं एगं भागं ओयाए रतणिक्खेत्तस्स णिबुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरति मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहिं छेत्ता, तता णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति दोहिं एगद्विभागमुहुत्तेहिं अधिए, से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिर तच्चं भंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए बाहिरंत मंडलं उवसंकभित्ता चार चरति तताणं दोहिं राइदिएहिं दो भाए| ओयाए रतणिक्खेत्तस्स णिव्वुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवुड्ढेत्ता चारं चरति मंडलं अहारसहिं तीसेहिं सएहिं छेत्ता, तया णं अट्ठासमुहुत्ता राई भवति चाहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति चाहिं एगट्ठिभागभुत्तेहिं अधिए, एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तताणंतरातो तदणंतरं मंडलातो मंडलं संक्रममाणे २ एगमेगे मंडले एगमेगेणं राइदिएणं एगभगं भाग N શ્રી સૂર્યપ્રણરૂપાક્રમ | [पू. सागरजी म. संशोधित | ३५ 7 For Private And Personal

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