Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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भवति तता णं लवणसमुद्दे उत्तरद्ध दिवसे भवति जता णं उत्तरद्धे दिवसे भवति तता णं लवणसभुद्दे पुरच्छिमपच्चस्थिमेणं राई भवति, जहा जंबुद्दीवे तहेव जाव उस्सप्पिणी तहा धायइसंडे गं दीवे सूरिया ओदीण तहेव, ता जता णं थायइसंडे दीवे दाहिणद्धे दिवसे भवति तता णं उत्तरद्धेवि दिवसे भवति, जता णं उत्तरद्धे दिवसे भवति तता णं थायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वताणं पुरथिमपच्चत्थिमेणं राई भवति, एवं जंबुद्दीवे जहा तहेव जाव उस्सप्पिणी, कालोए णं जहा लवणे समुद्दे तहेव, तो अब्भंतरपुक्खरद्धे णं सूरिया उदीणपाईणमुग्गच्छ तहेव ता जया णं अब्भतरपुक्खरद्धेणं दाहिणद्ध दिवसे भवति तदा णं उत्तरद्धेवि दिवसे भवति, जता णं उत्तरद्धे दिवसे भवति तता णं अभितरपुक्खरद्धे मंदराणं पव्वताणं पुरथिमपच्चत्थिमे णं राई भवति, सेसं जहा जंबुद्दीवे तहेव जाव ओस्सप्पिणीउसप्पिणीओ १२९॥ अट्ठभं पाहुडं ८॥ ___ता कतिकट्ठ ते सूरिए पोरिसीच्छायं णिवत्तेति आहिते०?, तत्थ खलु इमाओ तिणि पडिवत्तीओ पं०, तत्थेगे एवभाहंसुजेणं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला संतप्पति ते णं पोग्गला संतप्यमाणा तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई संतावेंतीति एस णं से समिते तावक्खेत्ते एगे०, एगे पुण-ता जेणं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला नो संतपंति, ते णं पोग्गला असंतप्यमाणा तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई णो संतावेंतीति एस णं से समिते तावक्खेत्ते एगे एव०, एगे पुण-ता जेणं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला अत्गतिया संतप्पंति अत्गतिया णो संतप्पंति, तत्थ अत्थेगइआ संतप्यमाणा तदणंतराई ॥ श्री सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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