Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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जंबुद्दीवे० दाहिणड्ढे अट्ठारसभुहुत्ते दिवसे भवति तता णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति तया णं दाहिणड्ढेऽवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति, ज्या णं जंबुद्दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवति तया| णं उत्तरड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवति, जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवति त्या णं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवति, एवं परिहावेतव्वं, सोलसमुहत्ते दिवसे पण्णरस० दिवसे चउदस० दिवसे तेरस० दिवसे जाव ता जया णं जंबुद्दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ते दिवसे त्या णं उत्तरद्धेवि बारसमुहुत्ते दिवसे भवति, जता णं उत्तरद्धे बारसमुहुत्ते दिवसे भवति तता णं दाहिणद्धेवि बारसमुहत्ते दिवसे भवति, जता णं दाहिणद्ध बारसमुहत्ते दिवसे भवति तताणं जंबुद्दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमपच्चस्थिभेणं सता पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवति सदा पण्णरसमुहुत्ता राई भवति, अवहिता णं तत्थ राइंदिया पं० समणाउसो! एगे एव०, एगे पुण०-जता णं जंबुद्दीवे दाहिणद्धे अट्ठारसमुत्ताणतरे दिवसे भवति त्या णं उत्तरद्धेवि अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, जया णं उत्तरद्धे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तता णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, एवं परिहावेतव्वं, सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति सोलसमुहुत्ताणंतरे० पण्णरसमुहुत्ताणंतरे० चोद्दसमुहुत्ताणतरे० तेरसमुहुत्ताणंतरे०, जया णं जंबुद्दीवे दाहिणद्धे बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति तदा णं उत्तरद्धेवि बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे जता णं उत्तरद्धे बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ त्या णं दाहिणद्धेवि बारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवति तदा णं जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिभपच्चस्थिभणं णो सदा ॥ श्री सूर्यप्रज्ञप्युपाङ्गम् ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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